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मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र
____ मैं आपको एक और कष्ट देना चाहता हूँ। जैन धर्म और इतिहास' आदि के विपय मे पाश्चात्य विद्वान लोग जो कुछ परिश्रम कर रहे है और वैज्ञानिक रीति से खोज कर रहे है वे सब अब आप स्वयं वहा अनुभव कर रहे है। यों तो अद्यावधि दोनों पक्ष के कई प्रमाणादि के साथ पुस्तक छप चुकी है, जिसमे अपने अपने पक्ष को पुष्ट किये है। निर्पेक्ष दृष्टि से और सच्ची ऐतिहासिक गवेपणा द्वारा वहाँ के विद्वान लोगो को श्वेताम्बरी और दिगम्बरी प्राचीनता के विषय मे क्या अभिप्राय है यह मेरे जानने की उत्कण्ठा है। मैने हाल में ही इडियन एन्टिक्वेरी में एक छोटा सा नोट (on the Swetamber & Dig amber Sects ) भेजा है। जब से मेरी दृष्टि मथुरा गर्भापहार के भास्कर पर आकर्षित हुई थी तब से यही धारणा प्रवल है कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय ही प्राचीन और मूल सम्प्रदाय है और इससे ही दिगम्बर सम्प्रदाय की शाखा निकली है। चाहे श्वेताम्बरियों के कई विभाग क्यो न हो, चाहे छठे कल्यानक को नहीं भी माने, परन्तु श्वेताम्बरियो मे सव विभाग वाले गर्भापहार की कथा स्वीकार करते है। परन्तु दिगम्बरियो के कोई भी विभाग यह प्राचीन इन्द्र के आदेश से 'हरिणेगमेषु' द्वारा देवानन्दा की कुक्षि से गर्भापहार की कथा विलकुल नही मानते है । नग्नत्व से ही प्राचीनता पुष्ट नहीं हो सकती इस विषय के समाधान के लिये और भी प्रमाण की आवश्यकता है और हमारे श्वेताम्बर सम्प्रदाय के ओसवाल जाति की सृष्टि के विषय मे भी वीर निर्माण के ६० वर्ष में रत्नप्रभ सूरि के द्वारा दीक्षित होने की कथा अथवा विक्रम सम्वत् २२२ में जैन धर्म अगीकार करके ओसवाल बनने की कथा भी असत्य प्रतीत होती है। आपके साहित्य संशोधक मे उपकेशगच्छ पट्टावली में जो ओसवाल ज्ञाति की सृष्टि का वृतान्त है वह भी कल्पित सा है। कही उप्पल राजा के पुत्र को, कही उनके मंत्री उहड़ के पुत्र को, और कही राजा और मत्री दोनो के पुत्रों को सर्प डसने का वर्णन मिलते हैं। आपके गवेषणा कार्य मे इस विषय पर और कुछ खुलासा या नई बातें मिली हो तो कृपया अवश्य सूचित