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मेरे दिवंगत मित्रो के पत्र
रुपया ३६५-४-६ हुए है । इस मध्ये जो कुछ पूने के फर्म के लगे हों सो आप रखकर बाकी रुपया यहां भेजने के लिये रसिकलाल भाई को आज्ञा दीजिएगा । ज्यादा शुभ । पट्टावली के आगे के फर्मों छपवाने के चावत मेरे विचार से वहा प्रबन्ध रखने से आपको अनुकूल होगा 1 फक्त छपे बाद फर्मों यहाँ मंगवाने में कुछ खर्चा लग जायगा । और इस विषय में आपको पेश्तर पत्र में खुलासा लिख चुके हैं। यानी खरतर गच्छ के सिवाय और गच्छो की पट्टावली प्राचीन अच्छी मिले तो वे भी साथ ही आपकी विचार शील भूमिका के साथ प्रकाशित करा देना ठीक होगा । फिर जैसी आपकी इच्छा हो उस मुजब हमें मंजूर है ।
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P. C. Nabar
M.A B.L.
45 Indian mirror Street Calcutta
21st February, 1926
परम पूज्य आचार्य जी महाराज मुनि जिनविजयजी की सेवा में लिखी कलकत्ते से पूरणचन्द नाहर की वदना अवधारिएगा । अपरंच आज दिन आपका ता. १७-२-२६ का नं. १४६ अंग्रेजी पत्र और साथ में चेक और पुस्तको का बाउचर मिला ।
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चेक तो मैंने लौटा दिया था और वहां पर ही कष्ट उठाकर उसे तुडवाकर रुपये भेजने को लिखा था । जो कुछ खर्च लगे वह भी देने की मंजूरी लिखी थी । मेरे यहां किसी प्रकार का लेन देन का व्यापार नहीं है । चेक हमें लेने मे बड़ी दिक्कत होती है । जो चेक लौटकर आई है उसमे पाने वाले के नाम मे "Gujarat" लिखा है और एन्डोर्स मे ' Gujarat " लिखा है । परसो सोमवार बैंक में चैक भेजा जायगा । दाम पटने पर मालूम होगा अस्तु । आगे पुस्तकों के बारे में भी वहां पर ही आप लोग आलस्य छोडकर बुकसेलरो की दी हुई केशमीमो और जो पुस्तकें है उनसे मिलान करने से मुझे इस विषय में