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मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र
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P. C. Nahar M. A. B. L. Vakil High Court
Phone : 255
48, Indian Mirror Street
Calcutta 15-9-1926
परम पूज्यवर आचार्य श्रीमान मुनि जिनविजयजी महाराज की परम पवित्र सेवा में लिखी कलकत्ते से पूरणचन्द नाहर सपरिवार की सविनय वंदना अवधारिएगा । यहाँ श्री जिनधर्म के प्रभाव से कुशल हैं। महाराज के शरीर सम्बन्धी सुख शान्ति सदैव चाहते हैं। अपरंच श्री पर्युपण पर्वाधिराज आनन्द पूर्वक आराधन किया मि. भादों सुद ५ श्री संवत् सरी प्रतिक्रमण कर सर्व जीव से क्षामणा करी । महाराज से भी विनय पूर्वक क्षमाते हैं। जाने अनजाने जो कुछ अविनय हुई हो वह क्षमा कीजिएगा।
अपरंच इधर कई महिनो से महाराज का कृपा पत्र आया नही। मैंने पेश्तर पट्टावली के फार्मे पहुँचाने के बाद आपकी सेवा में दो पत्र भेजे थे, महाराज को अवश्य मिला होगा परन्तु तत्पश्चात् अद्यावधि पत्रोत्तर से वंचित हूँ। मेरे पर तो सदैव कृपा दृष्टि चाहिये और हाल मे मेरी तवियत ठीक नही रहती है। जो कुछ मेरे यहाँ हस्त लिखित पट्टावली की प्रतियाँ थी, उनमें से जरुरत माफिक आप साथ ले गये है। अव विशेष अनुरोध है कि पट्टावली की आगे की कापी तैयार करा कर प्रेस में भेज दें और छपने पर वे फार्म भी यहाँ आ जायेंगे हम सब हाल आपको निवेदन कर चुके है और विशेष आपके पा से ज्ञात होगे।
वर्तमान मे महाराज का पुरातत्व मन्दिर में ठहरना कव तक होगा लिखिएगा । जहाँ तक हो सके पट्टावली की पुस्तक महाराज के नोट
और टिप्पणी तथा व्याख्या के साथ शीघ्र प्रकाशित होनी चाहिये। ज्यादा क्या अर्ज करें।
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