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मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र यहाँ श्री जिन धर्म के प्रसाद से कुशल है । महाराज की सुखसाता सदा चाहते हैं । अपरंच आपका कृपा पत्र प्राप्त होकर विशेष अनुग्रहीत हुआ । प्राचीन जैन लेख संग्रह भी पहुंच गया है । जिसको मैं हार्दिक धन्यवाद और कृतज्ञता के साथ स्वीकार करता हूँ।
मैं ओरिएन्टल कॉन्फ्रेन्स के बाद ही अपने इलाके पर चला गया था। लौटने के समय मेरे आँख मे ठड लगकर तकलीफ हो गई है। इस कारण इस अमूल्य ग्रन्थ के देखने से वचित हूँ। इस ग्रन्थ के लिये मैं बहुत दिनों से उत्कठित था और आशा है कि इस संग्रह से मुझे बहुत कुछ लाभ होगा।
आपकी आज्ञानुसार मैं शीघ्र ही ओरिएंटल कॉन्फ्रेन्स का प्रोग्राम : और प्रबन्ध की सूची आदि आपकी सेवा मे भेजूगा और सब पब्लिकेशन यहाँ के विश्व विद्यालय की ओर से प्रकाशित होने वाला है प्रकाशित होने पर यथा समय भेजूंगा आपने प्रबन्ध के लिये लिखा, मेरी भी अत्यन्त इच्छा थी, परन्तु अस्वस्थता के कारण असमर्थ हूँ। मेरा ओरिएटल कान्फ्रेन्स के लिये लिखा अग्रेजी का प्रबन्ध इसके साथ भेजता हूँ। यदि उचित समझे तो इसे साहित्य संशोधक पत्रिका मे स्थान दीजिएगा।
आगे बोलपुर शांति निकेतन के लिये रवि बाबू ने हाल ही मे विश्व भारती विद्यालय स्थापित किया है। उसमे उनकी एक जैन विभाग खोलने की बहुत ही अभिलाषा है । उसका प्रोस्पेक्टस जो मेरे पास आया है, उसे इसके साथ भेजता हूँ। आप इसे अवकाश पर देखिएगा । मेरी राय मे इनके उद्यम को भी जहाँ तक बने सहायता देना कर्त्तव्य है । और मेरे योग्य सेवा लिखते रहे । ज्यादा शुभ ।
P.C, Nahar M.A,B.L