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बाबू श्री पूर्णचन्दजी नाहर के पत्र
होने का समाचार तार से सूचित कीजिएगा और इन प्रश्नो के उत्तर के विपय के यदि कोई हस्तलिखित या मुद्रित पुस्तक जो उचित समझे सो साथ में लेते आइयेगा। और यहां दो तीन रोज रहकर फिर आप जो छुट्टी मे आने का लिखा है, सो अवश्य स्मरण रखकर आइयेगा और साथ मे जो जो महानुभाव उस समय आना चाहे उनको भी लाइयेगा । लिखना बाहुल्य है कि उस समय भी आपके आने जाने का खर्च मैं देऊंगा और सब हाल आपके पहुँचने से निवेदन करूंगा। साथ में लेख संग्रह लेते आइयेगा।
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(इस विषय में और भी किसी से पूछताछ करनी हो सो करके आइयेगा) ज्यादा शुभ सं १९८२ मि. अघन सु. ४ ।
द : पूरणचन्द नाहर की वन्दना अवधारिएगा
(१६)
Calcutta 8-12-1925
श्रीमान आचार्य श्री जिनविजयजी महाराज साहब की पवित्र सेवा मे लि. पूरणचन्द नाहर की वन्दना बाचिएगा । अपरच आपका ता. ४-१२-२५ का कृपा पत्र मिला । यहां से लौटते समय आपकी तबियत खराव हो गयी थी, ज्ञात होकर दुःख हुआ। आपके गये बाद मुझे भी सर्दी होकर इधर तवियत अड़चन मे हैं और उपस्थित कार्यों की भी बाहुल्यता है।
आगे तीर्थ कल्प की प्रति की शीघ्र ही ज़रूरत है। कृपया रजिस्ट्री डाक से चिट्ठी पाते ही थोडा कष्ट उठाकर अवश्य रवाना कर दीजियेगा और अवकाश पर पच तीर्थों और प्रतिमाओ के जो लेख आपके पास अप्रकाशित हैं उन्हे भी खोजकर शीघ्र भेजने की कृपा कीजियेगा और पट्टावली के फर्मे छपे हुये हैं वे भी रवाना कराने का