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बाबू श्री पूरणचन्द जी नाहर के पत्र
और कुछ पत्रिका नं० १४ आई थी उनके रुपये यहाँ से दे दिये है। पत्रिका नग दो और भी खरीद कर भेजते है। और अवध की डिस्क्रीप्टिव केटलाग Descriptive Catalogue फक्त बंधवाये नही है । पार्सल या रसीद की पहुँच शीघ्र देने की कृपा कीजिएगा। योग्य सेवा लिखिएगा ज्यादा शुभम् सं. १९८२ महाविद १०, ता० ६-१-२६
पूरणचंद की वन्दना
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पोषवदी १२ सं० १९८२ सिद्ध श्री अहमदावाद शुभ स्थानेक श्री मान आचार्य महाराज श्री जिन विजय जी योग्य श्री कलकत्ता से पूरणचन्द नाहर की सविनय वंदना वांचिएगा। अपरच यहाँ पर सव कुशल है। आपके शरीर सम्बन्धी सुख शांति सदा चाहते है। विशेष पत्र एक पेश्तर लिखा है सो पहुँचा होगा। यहा पर जितनी पुस्तके आप रख गये थे वे दो बक्स मे पेक करके भेजने को कह गये थे लेकिन कुछ पुस्तकें दफ्तरी के यहां बंधने दी गई है और जो पुस्तको की लिस्ट भेजा है उनमें से जो-जो जरूरत होगी वे सब मिलाकर एक दूसरे वक्स मे फिर भेज देवेंगे बाकी पुस्तकें आज दिन पार्सल से भेजते है। माल से भेजने से प्रथम तो वहुत अर्से मे पहुंचती तथा यहाँ भी माल लगाने का पूरा झंझट होता है और खर्च भी बहुत थोड़ा किफायत होता सो जानिएगा । विल्टी इसके साथ भेजते है सो भाडा चुका कर माल मगवाने का हुक्म दीजिएगा । खर्चे का हिसाब पीछे भेज देवेंगे।
मागे चदा सा० से मुलाकात हुई थी वे आपको बहुत स्मरण करते है और प्रवचन परीक्षा ग्रन्थ धर्म सागर उपाध्याय कृत जिसका वर्णन उन्होने भंडारकर की रिपोर्ट १८८३ १८८४ के पा० १४४ से १५५ तक मे है। वह ग्रन्थ उनको देखने की बहुत उत्कंठा है। यहाँ मैंने बहुत तलाश किया मिला नही और मेरे पास भी नहीं है इस कारण आपको लिखते है कि कृपा पूर्वक वह प्रति चाहे आपके पास की चाहे और