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बाबू श्री पूर्णचन्दजी नाहर के पत्र
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भाग नही मिला । आपकी भेजी हुई सूची पहुंची उसमे लिखे अनुसार पुस्तकें पार्सल करके भेज देवेंगे । पुस्तकें आपकी आज्ञानुसार भेज देते. लेकिन उसमें बहुत सी पुस्तकें बंधवानी है सो बधवाकर एक साथ सव भेजेंगे।
आगे पुस्तको के तथा बधाई के हिसाव यथा समय भेजेंगे पेस्तर आपको पत्र के साथ पार्सल मे भेजी हुई पुस्तको की रेलवे रसीद रसिक लाल भाई के नाम से भेजी थी सो यथा समय पहुंच गई होगी । पहुँच अभी तक आई नही है, आने से ज्ञात होगा। रसिक लाल भाई की पुस्तकें पहुंचने से उनको लिस्ट करने के लिये कह दीजियेगा।
आगे पट्टावली के विषय मे हम आपको पूर्व पत्र मे लिख चुके है । जैसा आप प्रबन्ध करेंगे हमारे को वही मजूर है । इस विषय मे इतना और कहना है कि खरतरगच्छ की पट्टावली के साथ और भी गच्छान्तर की प्राचीन पट्टावली जो अद्यावधि अप्रकाशित हो और आप उन्हे प्रकाशित करना योग्य समझते हो तो वे भी इसके साथ छप जावे तो अन्छा हो । कुछ अधिक व्यय के लिये आप चिन्ता न कीजिएगा, जिसमें पुस्तक उपयोगी हो और शीघ्र प्रकाशित हो इस पर विशेष ध्यान रखियेगा। ____ आगे मुझे हाल मे कमल सयम उपाध्याय जी के वाचनार्थ 'असंखयम्' नामक एक प्राकृत १३ श्लोक का पत्र संवत १५१२ अणहिल पुर पत्तन का लिखा हुआ मिला है पत्र इतना जीर्ण है कि डाक से भेज नहीं सकते, यह कही प्रकाशित हुआ है कि नही कृपया सूचित कीजियेगा । स्तोत्र का आरम्भ इस प्रकार है-"असंखयम् जीवियमा पमायए जे रोवणीयस्स हु नत्थिताण ॥ एव वियाणाहि जणे पमत्ते किं न विहिंसा अजया गहति । और समाचार आपके पत्र से ज्ञात होगा । कृपा पत्र दीजियेगा, योग्य सेवा हो सो लिखियेगा । ज्यादा शुभम् सवत् १९८२ पौष सुदी ८ ता० २२-१२-२५
द : पूर्णचन्द की वन्दना