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बाबू श्री पूर्णचन्दजी नाहर के पत्र
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Calcutta 16-9-1923
परम पूज्य वर मुनि महाराज श्री जिनविजयजी आचार्य महाराज की परम पवित्र सेवा मे लिखी पूरणचन्द नाहर की सविनय वदना अवधारियेगा । यहाँ श्री जिनधर्म के प्रसाद से कुशलता है। महाराज के शरीर सम्बन्धी सुखसाता सदा चाहते हैं अपरच श्री पर्युषण पर्वाधिराज निर्विघ्न से हुआ। सम्वत्सरी सम्बन्धी महाराज से मन वचन काया से क्षमाते है । जो कुछ अविनय हुई हो सो निज उदार गुण से क्षमा कीजिएगा। आगे जैन साहित्य संशोधन की दूसरे खड की प्रथम सख्या मिली । कार्य ठीक चल रहा है जैन पत्र मे जाहिर खबर का हेड बिल भी देखा आशा है ग्राहक सख्या बढ़ेगी। साधु साध्वी और गृहस्थो के लिये भेंट की व्यवस्था ठीक है। मैंने तो वी. पी. से मगाली है परन्तु मेरे ख्याल से पत्र के Life members को जो कुछ भेट की पुस्तके हो भेजनी चाहिए। मेरे पुस्तकालय के लिये एक प्रति 'हरिभद्राचार्यस्य समय निर्णय' भेजने की आज्ञा दे । आगे मेरा विचार अब शीघ्र जैन लेख संग्रह भाग दूसरा छपवाने का है। यदि आप ठीक समझे तो मथुरा के लेखो को ही दूसरा भाग करके छपा देवें । यदि आपके यहाँ छपे तो उसके केवल मात्र प्लेटस यहां छपा लेवें । डिमाई ४ पेजी पुस्तक देवाक्षर मे छपाने का खर्च per form और कागज का मूल्य का Estimate भेजें तो जहाँ तक बनेगा प्रवन्ध करेगे। मुझको केवल 1" form का Ist proof और पीछे केवल last proof भेजने से ही होवेगा । और चाहे आप कापी भेजे तो यहाँ से इसी तरह proof आपको भेजते रहे जैसा अनुकूल हो सूचित कीजियेगा। आगे आपको अव शायद आबू के लेखो को देखने का अवसर नही मिलेगा। यदि ऐसा हो तो जो लेख मैंने आपको दिया है, वे भेज देखें तो यहाँ हमारे बहुत सुविधा होगी । मै ही तीसरे भाग मे जो आपके सग्रह मे छट गये