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... . .. . . . .. बावू श्री पूर्णचन्दजी नाहर के पत्र
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लेखो की सामग्री जो मैं छोड आया था,-पहुंच गई। पेश्तर,मे आबू का मिला था, उनमे मैं जो आपके पास रख -आया था, उन cuttings मे तीर्थकरो की कल्याणक, तिथियो के लेख की छाप नहीं मिली सो. यदि वहाँ खोजने पर मिल - जाय-तो आप फिर जब अहमदावाद पधारियेगा, तलाश करके भेजने की कृपा करियेगा। . • आगे मथुरा के लेखो को, प्रकाशित करने के बारे में मैं सोच ही रहा.था-कि आपका पत्र मिला । मेरे जैन लेख संग्रह के दूसरे भाग में ८०० लेख तो . छप. चुके है । मथुरा-के लेख एक सौ से कुछ ऊपर हैं, परन्तु वे लेख बड़े महत्व के हैं। इस कारण दूसरे भाग मे नही देकर इनकी एक पृथक पुस्तक छपवाने का ही सकल्प किया है और मैं जहाँ तक कर सकूगा वहुत से प्लेट देने का भी विचार किया है । आप इस विषय- को-सोचकर-यहा दो-एक महिने के लिये आकर इस, कार्य को आपकी इच्छानुकूल समाप्त करने का विचार, करे सो, ऐसा सयोग होने से आशा है कि एक अत्युत्तम ग्रन्थ वन जायगा । प्रथम में तो आप जो मेरा सग्रह देख गये थे, इधर और. भी. आवश्यकीय ,बहुत सी ऐतिहासिक पुस्तको का संग्रह किया है, जो आपके देखने ही से ज्ञात होगा । कारण, सूत्री बनवाने का अवकाश नही मिला । और मुझे आशा है, कि आपको इस कार्य मे एक: मास से अधिक नहीं लगेगा। कारण ओर साधन, यहा तैयार मिलेगा । मैं भी सेवा मे रहूँगा और यहा पर बहुत से विद्वानो का आजकल समावेश भी है । उन लोगो से जैसी सहायता की आवश्यकता होगी मिलती रहेगी। . . । मैं आपको यहां शीघ्र ही आने के लिए विशेष अनुरोध करता परन्तु मैंने कुछ और लेखो के, सग्रह के लिए एक दफह जैसलमेर जाने का निश्चय किया है । श्री पर्युषणजी के बाद ही सु०.८ ता० २७ को रवाना हो जाऊंगा । जोधपुर - होकर जाऊंगा । वहां से श्री केसरिया नाथ जी जाऊँगा । वहाँ मेरी स्त्री जो मेरे साथ जायगी ओलीजी करेगी। फिर वहाँ से मुझे श्री राजगिर १८ अक्टूबर को अवश्य पहुँचना