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बाबू श्री पूरणचन्दजी नाहर के पत्र
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ऐतिहासिक अमूल्य लेखो का प्रकाशित होना ही मेरा प्रधान उद्देश्य है । मैने जो और लेख संग्रह देखा है, उसमे तो प्रायः हमारे लेख प्रकाशित नही हुए हैं। यदि आप वाले संग्रह में आये हों तो आपका लिखना यथार्थ है कि द्रव्य और शक्ति व्यर्थ न होना चाहिये । इस हालत में आप कृपा करके आपका संग्रह हमे भेज दें तो उसको देखकर मिलालू और आपके सग्रह मे जो लेख आ गये हैं उनको मेरे संग्रह में भी प्रकाशित करने में कोई नुकसान नहीं है। क्योकि मेरे संग्रह में केवल मूल मूल भाग ही छपेगा। और आपके मे विवरण सहित छपेगा। इस भाग मे मथुरा, पाबू, सिद्धगिरि, गिरनार, प्रभृति प्राचीन स्थानो के खास कर जो अंग्रेजी जनल आदि मे इतस्ततः छपे है उसको एक साथ प्रकाशित करूंगा । कार्य सेवा फरमायेगा-ज्यादा शुभ
भवदीय
पूरण चन्द नाहर
48, Indian Mirror Street
Calcutta 25-3-1920 P. C. Nahar, M. A. B. L. Vakil high court Phone 2551
विद्वदर्य मुनि महाराज पूज्य श्री १०८ श्री जिनविजयजी महाराज की सेवा मे लिखी पूरणचन्द नाहर की वन्दना पहुंचे।
यहां श्री जिन धर्म के प्रसाद से कुशल है महाराज की सुखसाता सदा चाहता हूं । अपरच "श्री जैन साहित्य सशोधक समाज' का आवेदन पा यथा समय यहां पहुंच गया था लेकिन मैं ग्वालियर जयपुर आदि पश्चिम प्रदेश मे कार्यवश चला गया था, इस कारण पत्रोत्तर देने में विलम्ब हुआ-क्षमा कीजिएगा, इस 'समाज' के स्कीम