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मेरे दिवंगत मित्रो के कुछ पत्र के विषय में अधिक लिखना निष्प्रयोजन है। यह उद्योग समयानुकूल और सर्व प्रकार से प्रशंसनीय है। परन्तु इस बात का पूरा लक्ष्य रखना चाहिये कि ऐसी संस्थानो की भीति पक्की नीव पर हो और किसी कारण से भी कार्यकर्ता लोग निरुत्साह अथवा भग्नोद्यम न होने पावें, उद्देश्य और कार्य की तालिका में विपय की पूर्ति अच्छी तरह दे दी गई है और आशा है कि थोड़े ही समय में आपके जैसे महानुभावों के उद्योग से बहुत कुछ ऐतिहासिक और साहित्यिक विषय जो कि नष्ट होता जा रहा है बराबर के लिये सुरक्षित रहेगा। और इस प्रकार प्रकाशित होने से अन्यमति विद्वानों पर भी प्रभाव अच्छा पड़ेगा और जैन शासन की उन्नति होती रहेगी मुझे एक और भी विपय, विशेष पसन्द आया कि इस समाज मे अपने श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सम्प्रदाय का वैमनस्य दूर करने का पूरा प्रयास किया गया है। दोनों के परस्पर सहायता विना पूरी कार्य सिद्धि नहीं हो सकेगी। मेरे योग्य सेवा लिखिऐगा ज्यादा शुभम्
पूरणचन्द नाहर की वन्दना अवधारिएगा।
(३)
Calcutta 6-9-20 सं. 1977 भादासुद 8
P. C. Nahar, M. A. B. L. Vakil High Court
पूज्यवर श्रीयुत मुनि जिनविजयजी महाराज की पवित्र सेवा में।
लिखि पूरणचन्द नाहर की सविनय वन्दना के पश्चात् निवेदन है कि महाराज का कृपा पत्र प्राप्त होकर बहुत प्रसन्नता हुई। समाचार सव ज्ञात हुए।