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स्व० कुमार श्री देवेन्द्रप्रसाद जैन के पत्र
पूना ओरिएटल कांग्रेस में भाग लेने वे जब आए थे तब उनके सम्मुख जैन साहित्य संशोधक समाज के स्थापन विषयक विचार हुग्रा और समाज के द्वारा एक सशोधनात्मक त्रेमासिक पत्र के निकालने की योजना निश्चित की गई पूना से आरा गये बाद 'उन्होने जो पत्र लिखे उनमें का यह न० १ पत्र है ।
पत्रांक १
Prem Mandir, ARRAH 19-11-1919
श्री परम पूज्यास्पद महाराज श्री वन्दनामी,
आपके दर्शन से इस बार जीवन सफल हुआ-दूर से आपकी प्रशसा सुना करता था, उससे भी अधिकाधिक प्रत्यक्ष दर्शन से लाभ हुआ । धन्य है आप और आपका परोपकार वृत और आत्मज्ञानआपके शरणागत रहकर मेरा आत्मा बहुत कुछ यश, ज्ञान, ध्यान प्राप्त करेगा ऐसी पूरी श्राशा है । हम अपने जीवन के अल्प काल मे बहुत संत साधु दोनो श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय से मिले, परन्तु जो असीम आनन्द आपके दर्शन से हुआ वह अब तक प्राप्त नही हुआ था - धन्य भाग्य - आपको इस सेवक की सेवकाई पसद आईयह हमारे लिये बडे गौरव की बात हैं । सकुशल आरा आ गया - कुछ अस्वस्थ रहा -- इसी से पत्र देने में विलम्ब हुआ — क्षमा करें। Jaina Antiquary Jaina Research Socity a Jaina Congress of Orientalist यही तीन अब जीवन मे रत्नत्रय रूप धर्म साधन
है - इसकी सिद्धि आपके हाथ है - लेखादि के लिये पत्र व्यवहार
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