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श्री देवेन्द्रप्रसादजी जैन के पत्र
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प्रो० जायसवाल जी हम लोगो के साथ हैं। जिस प्रकार की सहायता चाहेगे, वे देंगे । जर्मनी पत्र लिखा है। नियमावली के वगैर बाहर पत्र भेजने में दिक्कत पड़ती है । मिस्टर शाह बड़ौदा से आ गये होगे। __ मैं पूरी कोशिश कर रहा हूँ। जुगल किशोरजी ने लिखा है कि अभी उनके पास नियमावली जैन हितैषी मे छपने के लिये नही पहुंची है। ___ आपने प्रेमी जी के पास भेजा तो था उनसे वापस क्यो मगा लिया एक वार छप जाता पुन. उसको ठीक करके अलग छपाया जाता अपने तरफ से कोई पत्र छपा कर बाटना भी ठीक ही है। 'योजना' मिलते ही अग्नेजी के जैन गजट आदि अनेक पत्रो मे साइज तथा पत्र की सूचना प्रकाशित करवा दूंगा। मि० आयगर के पास एक कॉपी 'साइन्स ऑफ थॉट' तथा द्रव्य संग्रह भेजा है। 'आउट लाइन्स आफ जेनिज्म' मेरे यहाँ से प्रकाशित नही हुई है । केबीज युनिवर्सिटी प्रेस ने छापी है ३१) मूल्य है मेरे पास केवल एक है। कहे तो नवीन खरीदकर भेजदूं। आप मुझको भी सी. पी. लेते चलें। अभी दो एक अक प्रकाशित हो जाय तब भ्रमण शुरू हो।
आपका चरण सेवक आज्ञाकारी
देवेन्द्र प्रसाद जैन
पत्रांक ६ श्री पूज्य महाराज जी वन्दनामी,
आपको पत्र के ध्यान मे कितना बडा कप्ट उठाना पड़ रहा है । मैं दूर होने के कारण आपको किसी प्रकार की भी सहायता नही पहुंचा रहा हूं। मैं बहुत लज्जित हूँ इधर मैं जव से पूना से लौटा हूँ तव से वाहर घूम फिर रहा हूँ। आरा एक सप्ताह भी चैन से नहीं ठहरने