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श्री देवेन्द्रप्रसादजी जैन के पत्र
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पावा पुरी का जो रंगीन चित्र छपा है वह श्री देवेन्द्र कुमार ही ने छपवाकर भेजा था-इसका संकेत पत्र नं० २ मे है।
पत्रांक ५
आरा श्री पूज्य महाराजजी,
आपके दोनो कृपा पत्र उत्तर के लिये सामने हैं, अभी काशी, प्रयाग से लौटा हूँ-पूर्ण एक सप्ताह भ्रमण मे लग गया। अपने दो चार मित्रों को उत्साहित बनाया है-अभी एतिहासिक शोध के काम को समझने वाले जैनियो मे बहुत कम व्यक्ति हैं, जान डालने की आवश्यकता है। जैन सिद्धान्त पर तो रात दिन व्याख्यान होते ही है अब ऐतिहासिक व्याख्यानो की एक मात्र आवश्यकता है । आप इसके अगुअा है, तो अवश्यमेव उद्धार होगा ही। जितने जैन चित्र प्राचीन स्थलो के अब तक सग्रह हैं उनका मेजिक लेन्टन स्लाइडस् बनाया जाय और जहाँ कही भी हम लोगो का दौरा हो वहाँ स्लाइडो द्वारा व्याख्यान दिया जाय तो अच्छी उत्तेजना हो सकती है। आप अभी मेरी संग्रहित तस्वीरो को कब तक और रखना चाहते हैं। इस वार प्रथम अक मे कोई तस्वीर प्राचीन ऐतिहासिक दृष्टि से प्रकाशित होनी चाहिये । पं० जुगल किशोर जी भी आपके साथ ही रहते तो काम मे जल्दी सहायता मिलती, तथापि मुझको तो आपकी आत्मशक्ति पर पूर्ण विश्वास है, अभी आपकी लिखी हुई पुस्तिका युग्म पढ रहा था। आनन्द का अपरम्पार था आपने मेरी लिखी हुई त्रिवेणी नाम की छोटी सी पुस्तिका पढ़ी है, नही पढ़ी हो तो हम भेज दें। प्रेस के लिये बम्बई आपको निकट होगा । जिस प्रेस मे पडित नाथूराम जी का जैन हितैषी छपता है, वहां ही प्रबन्ध करालें । त्रैमासिक पत्र के छापने मे प्रेस वालो को विशेष अड़चन करना अनुचित है । साइज क्या निश्चय किया सो लिखें । मुझको तो छोटी साइज पसन्द है-यही सरस्वती या