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श्री राजकुमारसिंहजी के पत्र
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आप इस कार्य को उत्तमता से और उत्साह से चलावें और श्री सेकेट्री सा. को भी इत्तला देवें और मैं बम्बई आऊँगा जब उनको बुला लूगा। जैसा उनका लिखना है और मैं श्री मगसी के लिये उज्जेन गया था और २.३ साहब भी पधारे थे। उसका प्रवन्ध किया गया है और कमेटी भी कारोबार चलाने को नियत की गई है आशा है कि अधिष्ठाता सर्व कार्य फतह करेंगे और मेरे लायक कोई कार्य होवेसो लिखियेगा। धर्म स्नेह कृपाभाव विशेष रखिएगा। आगे शुभ सावन सुदी ८ स. १६७६ ।
द. राजकुमार की विनयपूर्वक वन्दना
अवधारियेगा
(८) No: 6 New Queens Road,
Bombay
2-4-1920 श्री पूना शुभ स्थान सर्व ओपमा लायक सर्वगुण निधान परम उपकारी मुनि महाराज श्री १०८ श्री जिनविजयजी महाराज जोग लिखी राजकुमार की विनयपूर्वक वन्दना अवधारिएगा। यहां धर्म प्रसाद से कुशल' है। आपके सुख साता के समाचार पत्र द्वारा पढ़कर आनन्द हुआ। आपने मेरे न जाने पे जो फरमाया दुरस्त है। उत्कंठा रहते भी योग न बना अन्तराय सिवा क्या समझा जावे। अब मैं यहाँ सावण भर रहने का विचार करता हूँ। इस वीचमे जरूर आकर दर्शन करूँगा मेरे ऊपर इतने कृपालु हैं यह अच्छे पुण्य समझता हूँ। वर्ना साधारण पुरुष भी विद्वान से मिलना चाहे, हम जैसे से नहीं ! और पुस्तक वावत मिलने पर आपसे राय करने पर जो होगा, किया जायगा । अभी शास्त्रीजी को भी समय कम था वे योरोप को रवाना हो गये। वे प्राकृत और पाली भी थोड़ा देखे हुए हैं। शायद पुने भी गये थे। लाहोर के रहवासी हैं। इस वक्त कलकत्ता कालेज में सरकारी सर्विस