Book Title: Mahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Amrutrasashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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________________ शुभ अभिलाषा सुविशालगच्छाधिपति आचार्यदेवेश, राष्ट्रसंत शिरोमणी श्रीमद् विजय जयंतसेनसूरीश्वरजी म.सा. की आज्ञानुवर्ती साध्वीजी श्री भुवनप्रभाश्री जी की सुशिष्या साध्वीजी श्री अमृतरसाश्री जी के चरणों में वंदना / हमें ज्ञात हुआ की आपकी Ph.D. की पढाई पूर्ण हो चुकी है और दिनांक 12-9-2013 को अहमदाबाद में आपको डाक्टरेट कि पदवी से अलंकृत किया जायेगा / यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई। आपका संयम जीवन दूसरो के लिए आदर्श बने इसी शुभ भावना के साथ हमारा ढेर सारी शुभ कामनाए / दिनांक : 29-8-2013 श्री पार्श्वनाथ राजेन्द्रसूरि जैन ट्रस्ट गुन्टूर गुन्टूर ऐतिहासिक सफलता - हार्दिक बधाई सुविधिनाथ जैन पेढी सियाणा-३४३०२४ (जालौर - राज.) जालोर जिला का प्रसिद्ध गांव सियाणा समस्त जैन धर्मानुयायियों के तरफ से साध्वी जी अमृतरसाश्री द्वारा "यशोविजय महाराज-एक दार्शनिक चिन्तन" रचना पर Ph.D. की मानद् उपाधि प्रथम स्थान के साथ प्राप्त किये जाने पर अपना हार्दिक बधाई अर्पित करते हुए अपने को गर्वान्वित अनुभव करता है / दीपचन्दजी बाफना सियाणा हार्दिक बधाई जैसे आकाश में अनेक तारे अपनी आभा निरंतर बिखेरते हैं वैसे ही भगवान महावीर की परंपरा के अनेक विद्वान आचार्यों एवं श्रमणों की कृति की आभा से भारतीय साहित्याकाश आभाषित है / इन ज्ञान साधकों के समुह में आचार्य कुंदकुंद, आचार्य हरिभद्र, आचार्य हेमचन्द्र एवं अपने दादा गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी ऐसे व्यक्ति के धनी है कि जिनको भारतीय साहित्याकाश के सूर्य चन्द्र की संज्ञा दी जा सकती है। उसी श्रृंखला में उपाध्याय यशोविजयजी का नाम भी जोडा जाता है / वे भी अनुपम मनीषि थे / उन्हें हेमचन्द्राचार्य एवं हरिभद्रसूरि की परंपरा में अंतिम बहुमुखी प्रतिभावान विद्वान माना जाता है। ऐसे महान विद्वान साहित्यकार मनीषि के जीवन पर शोध, उनके कृतीत्व का नवनीत समाज के सामने प्रस्तुत करने का भगीरथ कार्य विदुषी लेखिका सा. श्री अमृतरसा श्रीजी ने किया है जो वंदनीय एवं स्तुत्य है। 11 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org