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महाकवि पुष्पवंत कृत महापुराण
ऋषि, विद्याधर यक्ष, पिशाच आदि की स्त्रियों के कई प्रकार होते हैं। तापसी स्त्री सीधी और | पेशाखिनी तामसिक और नासमझ होती है । खेचरी (विद्याधरी) मदिरा और फूलों की शौकीन होता घुमक्कड़ | यक्षिणी धनकण के लोभ के अधीन होती है। सारंगी, मृगी, रिट्ठनी, शशि, धृतराष्ट्रणी, महिषी, खरी और मदकरी - ये आठ युवतियाँ कही गई हैं। इनमें सारसी अपने स्वन-कलों से प्रिय के वक्ष को प्रेरित करती है और उसके साथ को नहीं छोड़ती। मृगी अपने बान्धवों को दान देने से संतुष्ट होती है। कोटने पर डरती है और गीत सुनती है। रिट्ठणी पुत्र रूपी पात्र से दुखी रहती है, उसका कोए जैसा शब्द होता है और युद्ध से भयंकर स्थान को छोड़ देती है। शशि दुख की भाजन और निमीलित नेत्रों वाली होती है, निर्दय और दूसरे घर के कौर को देखने वाली । धृतराष्ट्रणी कमलों के सरोवर में क्रीड़ा करनेवाली महिषी भयंकर कोष के भावेग में बोलने वाली खरी खेलती हुई हँसती है, कहकहा लगाकर किए गये हाथ और पाव के प्रहार को सहन करती है । मदकरी मांस खानेवाली, मजबूत पकड़वाली, साहस दिखानेवाली और कुकर्म का निर्वाह करनेवाली होती है ।
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कवि पुष्पदन्त ने देशी स्त्रियों का भी उल्लेख किया है— मालवी स्त्री शिव चाहनेवाली होती है। वाराणसी में उत्पन्न होनेवाली वनवासिनी स्वभाव से लम्पट और दुष्ट बोलनेवाली होती है। अनुं ददेश की स्त्री मंदगामिनी होती है, उसका पहला काम दूसरे के धन को छीनना है। दिन की मर्यादा बांधकर रतिरस का संधान कर तब का मकोड़ा करती है। सिंधु देश की स्त्री प्रिय के घर में शोभित होती है और अपने प्रिय को प्राण और धन दोनों अर्पित कर देती है। कोशल देश की स्त्री का भाव मायावी होता है । सिंहल देश की बाला को रति के गुण से पाया जा सकता है । द्रविड़ देश की स्त्री को दन्त और नखच्छद से पाया जा सकता है। आंध्र महिला परिपूर्ण रस से चौंक जाती है। सुन्दर आलाप से लाद देश की स्त्री लजा जाती है। उड़ीसा देश की स्त्री कामविज्ञान से भेदन करने योग्य है। कलिंग देश की महिला उपचार का प्रयोग करती है । रश देश की स्त्री शुष्क और रूखी होने पर भी रंजन करती है। सौराष्ट्र की स्त्री चुम्बन मात्र से संतुष्ट हो जाती है। गुजरात देश की स्त्री अपने काम में दक्ष होती है। महाराष्ट्र देषा की स्त्री को कितना भी अनुशासित किया जाए तब भी उसका धूर्तपन दिखाई देता है। कोंकण देश की स्त्री को कुछ भी दिया जाए, वह उसका विचार करती हुई क्षीण होती रहती है । पाटलिपुत्र की स्त्री प्रसन्न काम लीलाओं का प्रदर्शन करनेवाली, जांघ पर जय रखनेवाली होती है। पारियात्र की महिला पुरुष के अनुकूल या प्रतिकूल कुछ भी व्यवसाय करनेवाली होती है। हिमवंत देश की महिला कुछ मंत्र बीजाक्षर जानती है जिससे वर उसके पैरों पर जा पड़ता है। मध्यदेश की नारी कला का घर होती है तथा कमल की तरह कोमल होती है। (71 /6,7,8 ) प्रकृति के विचार से भी युवतियां तीन प्रकार की होती हैं-वात, कफ और पित्त के भेद से पित्त प्रकृति वाली बात-बात में रूठती है। उसे दिन-प्रतिदिन धूर्तता से संतुष्ट करना चाहिए। पीले नखोंवाली बुद्धिमान और गोरी को कोमलता से रतिविह्वल करना चाहिए। यदि वह उन्नत स्तनों ओर उत्तम अंगवाली समझो तो शीतल आलिंगन देना चाहिए। जिसकी शीतल गन्ध हो, श्वेत दुपट्टा हो उसे भी शीतल आलिंगन देना चाहिए | श्लेष्म प्रकृतिवाली श्यामल उज्ज्वल वर्णवाली होती है, अभिनव कदली के अंकुर के समान कोमल । दोष देख लेने पर वह निश्चय से चूक जाती है। फिर इस जन्म में वह कभी भी पास नहीं पहुँचती । उसे सत्म, विनय और दाम से ग्रहण करना चाहिए, नहीं तो उसके बंग को नहीं छूना चाहिए। जिसका रतिजल से भरपूर कोमल कटितल है, दुगंध रहित पारीर का सुन्दर सौरभ, लाल नाखून, सुन्दर हाथ-पैर हैं ऐसी सुन्दरी साधारण सूरत में आदर करनेवाली होती है। वात प्रकृतिवासी विलासिनी, श्याम और कठोर होती हैं। खूब खाती है और खूब बोलती है। उसके साथ कठोर प्रहारों और गम्भीर शब्द से रमण किया जाय