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जी कुल काव्य परपरिच्छेदः र
मेष-महिमा 1- समय पर न चूकने वाली मेघवर्षा से ही धरती अपने को धारण किये हुये है, और इसीलिये लोग उसे अमृत कहते हैं ।
2-जिलने भी स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ हैं, वे सब वर्षा ही के द्वारा मनुष्य को प्राप्त होते हैं और जल स्वयं ही भोजन का एक मुख्य अंग
हैं।
3-यदि पानी न वर्षे तो सारी पृथ्वी पर अकाल का प्रकोप छा जाये, यद्यपि वह चारों ओर समुद्र से घिरी हुई है ।
4. स्वर्ग के झरने यदि सूख जावें तो किसान लोग हल जोतना ही छोड़ देंगे।
5-वर्षा ही नष्ट करती है और फिर यह वर्षा ही है, जो नष्ट हुए लोगों की फिर से हरा भरा कर देती है ।
6-यदि आकाश से पानी की बौछारें आना बन्द हो जाये तो घास का उगना तक बन्द हो जायगा ।
7-स्वयं शक्तिशाली समुद्र में ही कुत्सित वीभत्सता का दारुण प्रकोप जग उठे, यदि आकाश उसके जल को पान करना और फिर उसे वापिस देना अस्वीकार कर दे ।
B-यदि स्वर्ग का जल सूख जाय तो न तो पृथ्वी पर यज्ञ-याग होंगे और न भोज ही दिये जायेंगे ।
g-यदि ऊपर से जलधारायें आना बन्द हो जार्य तो फिर इस पृर्थी भर में न कहीं दान रहे, न कहीं तप ।
10-पानी के बिना संसार में कोई काम नहीं चल सकता, इसलिये सदाचार भी अन्ततः वर्षा ही पर आश्रित है ।
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