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-जा कुबरम काव्य पर
पारदः । अतिथिसत्कार
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1-बुद्धिमान् लोग. इतना परिश्रम करके गृहस्थी किस लिये बनाते हैं ? अतिथि को भोजन देने और यात्री की सहायता करने के लिए।
2-जब घर में अतिथि हो तब चाहे अमृत ही क्यों न हो, अकेले नहीं पीना चाहिये।
3- घर आये हुए अतिथि का आदर-सत्कार करने में जो कभी नहीं चूकता. उस पर कभी कोई आपत्ति नहीं आती।
4-जो मनुष्य योग्य अतिथि का प्रसन्नता पूर्वक स्वागत करता है. उसके घर में निवास करने से लक्ष्मी को आल्हाद होता है ।
5-प्रथम अतिथि को जिमाकर, उसके पश्चात् बचे हुये अन्न को जो स्वयं खाता है, क्या उसे अपने खेत को बोने की आवश्यकता होगी २
6-जो पुरुष बाहिर जाने वाले अतिथि की सेवा कर चुका है और आने वाले अतिथि की प्रतीक्षा करता है, ऐसा आदमी देवताओं का सुप्रिंय अतिथि बनता है।
7- हम किसी अतिथि-सेवा के माहात्म्य का वर्णन कर सकते कि उसमें कितना पुण्य है। अतिथि-यज्ञ का महत्त्व तो अतिथि की योग्यता पर निर्भर है।
---जो मनुष्य अतिथि सत्कार नहीं करता वह एक दिन कहेगामैंने परिश्रम करके इतना धन वैभव जोड़ा पर हाय ! सब व्यर्थ ही हुआ, कारण वहाँ मुझे सुख देने वाला कोई नहीं है।
--सम्पत्तिशाली होते हुये भी जो यात्री का आदर-सत्कार नहीं करता. वह मनुष्य नितान्त दरिद्र है. ग्रह बात केवल मूों में ही होती है।
10-पारिजात का पुष्प सूंघने से मुझा जाता है पर अतिथि का मन लोड़ने के लिये एक दृष्टि ही पर्याप्त है।
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