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कुबल काव्य परपरिच्छेदः ७3
सभा में प्रौढ़ता 1--जिन व्यक्तियों ने भाषणकला का अध्ययन किया है और सुरचि प्राप्त की है ये जानते हैं कि भाषण किस प्रकार देना चाहिए और च बुद्धिमान् श्रोताओ के समक्ष भाषण देने में किसी प्रकार की चूक नहीं करते।
2-जो व्यक्ति ज्ञानी मनुष्यों के समुदाय में अपने सिद्धान्तों पर दृढ़ रह सकता है वही विद्वानों में विद्वान् माना जाता है।
3--रणक्षेत्र में खड़े होकर वीरता के साथ मृत्यु का सामना करने वाले लोग तो बहुत हैं परन्तु ऐसे लोग बहुत ही थोड़े हैं जो बिना काँपे श्रोताओं के समक्ष सभामंच पर खड़े हो सकें।
4-तुमने जो ज्ञान प्राप्त किया है. उसको विद्वानों के सामने खोलकर रक्खो और जो बात तुम्हें मालूम नहीं है वह उन लोगों से सीख लो जो उसमें दक्ष हों।
5-तर्कशास्त्र को तुम भली प्रकार सीख लो जिससे मानव समुदाय के सामने बिना भयातुर हुए बोल सको।
6-उन व्यक्तियों के लिए कृपाण की क्या उपयोगिता है जिनमें शक्ति ही नहीं है, इसी प्रकार उन मनुष्यों के लिए शास्त्र का क्या उपयोग जो कि विद्वानों के समक्ष आने में ही काँपते हैं?
___7--- श्रोताओं के सामने आने में भयभीत होने वाले व्यक्ति का ज्ञान उसी प्रकार है जैसे युद्धक्षेत्र में नपुंसक के साथ कृपाण ।
8-जो लोग विद्वानों की सभा में अपने सिद्धान्त श्रोताओं के हृदय में नहीं बिठा सकते उनका अध्ययन चाहे कितना ही विस्तृत हो फिर भी वह निरुपयोगी ही है।
- जो मनुष्य ज्ञानी हैं लेकिन विज्ञजनों के सामने आने में डरते हैं वे अज्ञानियों से भी गये वीते है।
10-जो व्यक्ति मानव समुदाय के सामने आने में डरते हैं और अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने में असमर्थ हैं वे जीवित होकर मृतकों से भी गये वीते हैं।
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