Book Title: Kural Kavya
Author(s): G R Jain
Publisher: Vitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP

View full book text
Previous | Next

Page 307
________________ जा कुबल काव्य परपरिच्छेदः १E कुलीनता उत्तम कुल के व्यक्ति में, दो गुण सहजप्रत्यक्ष । प्यारी 'लज्जा' एक है, दूजा सच्चा ‘पक्ष' ||१|| सदाचार लज्जा मधुर, और सत्य से प्रीति । इनसे कभी न चूकना, यह कुलीन की रीति ।।२।। सद्वंशज में चार गुण, होते बहुत अमोल । कर उदार, पर गर्वबिन, हँसमुख, मीठे बोल ।।३।। कोटिद्रव्य का लाभ हो, चाहे कर अघ काम । बड़े पुरुष तो भी नहीं, करते दूषित नाम ।।४।। देखो वंशज श्रेष्ठजन, जिनका कुल प्राचीन । त्यागें नहीं उदारता, यद्यपि हो धनहीन ॥५५॥ कुल के उत्तम कार्य का, ध्यान जिन्हें प्रतियाम । करें न वंचकवृत्ति वे, और न खोटे काम ।।६।। वरवंशज के दोष को, देखें सब ही लोग । ज्यों दिखता है चन्द्र का, सब को लांछन योग ।।७।। उच्चवंश का निंद्य, यदि, करता वाक्य प्रयोग । . करते उसके जन्म में, आशंका तब लोग ।।८।। तरु कहता ज्यों भूमिगुण, पाकर फल का काल । वाणी त्यों ही बोलती, नर के कुल का हाल ।।६।। चाहो सद्गुण शील तो, करो यत्न लज्जार्थ । और प्रतिष्ठित वंश तो, आदर कसे परार्थ ।। १०। .. - - 300 -- - - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332