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ज, कुलत्व काठ्य परपरिच्छेदः 906
भिक्षा
1-यदि तुम ऐसे साधन सम्पन्न व्यक्ति देखते हो कि जो तुम्हें दान दे सकते हैं तो तुम उनसे मांग सकते हो, यदि वे न देने का बहाना करते हैं, इसमें उनका दोष है तुम्हारा नहीं ।
2. यदि तुम बिना किसी तिरस्कर के जो पाना चाहते हो वह पा सको तो मॉगना आनन्ददायी होता है।
3- जो लोग अपने कर्तव्य को समझते है और सहायता न देने का झूठा बहाना नहीं करते उनसे माँगना शोभनीय है।
4-जो मनुष्य स्वाला में भी किसी की याचना को अमान्य नहीं करता उस आदमी से माँगना उतना ही सम्मानपूर्ण है जितना कि स्वयं
देना।
5-यदि हमारी, भीख को जीविका का साधन बनाकर निस्संकोच मांगते हैं तो इसका कारण यह है कि संसार में ऐसे मनुष्य हैं जो मुक्तहस्त होकर दान देने से विमुख नहीं होते।
6-जिन सज्जनों में दान देने के लिए क्षुद्र कृपणता नहीं है उनके दर्शन मात्र से ही दरिद्रता के सब दुःख दूर हो जाते हैं।
-जो सज्जन याचक को बिना झिड़क या क्रोध के दान देते हैं उनसे मिलते ही गायक आनन्दित हो उठते हैं ।
8-यदि दान धर्म प्रवर्तक याचक न हों तो इस सारे संसार का अर्थ का पुतली के नाच से अधिक नहीं होगा।
-यदि इस संसर में कोई मॉगने वाला न हो तो उदारतापूर्वक दान देने की शान कहाँ रहेगी?
___ 10-याचक को चाहिए कि यदि दाता देने में असमर्थता प्रगट करता है तो उस पर क्रोध न करे, कारण कि उसकी आवश्यकताएं ही यह दिखाने के लिए पर्याप्त होनी चाहिए कि दूसरे की स्थिति उस जैसी ही हो सकती है।
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