________________
फुरल काव्य
परिच्छेदः ९९ योग्यता
1- जो लोग अपने कर्तव्य को जानते हैं और अपनी योग्यता बढ़ाना चाहते हैं उनकी दृष्टि में सभी सत्कृत्य कर्तव्य स्वरूप हैं।
2 -- लायक लोगों के आचरण की सुन्दरता ही वास्तविक सुन्दरता है, शारीरिक सुन्दरता उसमें कुछ भी अभिवृद्धि नहीं करती।
3 - सार्वजनिक प्रेम, सलज्जता का भाव, सबके प्रति सद्व्यवहार, दूसरों के दोषों को ढाँकना और सत्य-प्रियता, ये पाँच शुभाचरण रूपी भवन के आधार स्तम्भ हैं ।
4 - सन्त लोगों धर्म है अहिंसा पर योग्य पुरुषों का धर्म है पर निचा से परहेज करना ।
5- नम्रता बलवानों की शक्ति है और वह वैरियों का सामना करने के लिए सदगृहस्थ को कवच का काम भी देती है ।
6- योग्यता की कसौटी क्या है ? यही कि दूसरों में जो बड़प्पन और श्रेष्ठता है उसको स्वीकार कर लिया जाय, फिर चाहे वह श्रेष्ठता ऐसे ही लोगों में क्यों न हो जो कि तुमसे अन्य बातों में हीन हों ।
7- लायक पुरुष की लायकी तब किस काम की जबकि वह अपने को क्षति पहुँचाने वालों के साथ भी सद्वर्ताय नहीं करता ?
B - निर्धनता मनुष्य के लिए अपमान का कारण नहीं हो सकती यदि उसके पास वह सम्पत्ति विद्यमान हो कि जिसे लोग सदाचार कहते हैं।
9. जो लोग सन्मार्ग से कभी विचलित नहीं होते, चाहे प्रलय काल में और सब कुछ बदलकर इधर का उधर हो जाय पर वे योग्यता रूपी समुद्र की सीमा ही रहेंगे।
10- निस्सन्देह स्वयं धरती भी मनुष्य के जीवन का बोझ न सम्भाल सकेगी यदि लायक लोग अपनी लायकी को छोड़कर पतित हो जावें ।
307