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ज, कुबल काव्य घर परिच्छेदः 903
कुलोन्जति नहीं थकूँगा हाथ से, करके श्रम दिन-रात । नर का यह संकल्प ही, कुल का पुण्य-प्रभात ।। १।।
पूर्ण कुशल सद्बुद्धि हो, श्रम हो पौरुषरूप ।
वंश समुन्नति के लिए, दो ही हेतु स्वरूप ।।२।। वंशोन्नति के अर्थ जब, नर होता सद्ध । उसके आगे देव तब, चलते हो कटिवद्ध ।।३।।
उच्चदशा पर वंश हो, ऐसा मन में ठान ।
उठारखे नहिं शेष जो, बनकर उद्यमवान ।। श्रेष्ठमनस्वी वीर वह, कृति उसकी गुणवान । चाहे यद्यपि अल्प हो, तो भी सिद्धि महान ।।४।।(युग्म)
वंशोन्नति का हेतु है, जिसका पुण्य चरित्र ।
सदा मान्य वह उच्चनर, उसका जग है मित्र ।।५।। धन में बल में ज्ञान में, कुल पावे उच्चार्थ । नर के जिस ही यत्न से, सत्य वही पुरुषार्थ ॥६॥
ज्यों पड़ते हैं वीर पर, रण में रिपु के बार ।
त्यों ही आता लोक में, कर्मठ पर कुलभार ॥७॥ उन्नति-रागी को सभी, भले लगें दिन-रात । चूक करे से अन्यथा, होता वंश-विधात ॥
कुलपालक की काय लख, उठता एक विचार ।
विपदा या श्रम अर्थ क्या, दैव रचा आकार ।।६।। जिस घर का उत्तम नहीं, रक्षक पालनहार । जड़ पर विपदा-चक्र पड़, मिटता वह परिवार ।। १०।।
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