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ज, कुनाल काव्य
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पदिन्द्ध : g.
खेती 1-आदमी जहाँ चाहे घूमें, पर अन्त में अपने भोजन के लिए उसे हान का सहारा लेना ही पड़ेगा। इसलिए हर तरह की सस्ती होने पर भी कृर्षि सर्वोत्तम उद्यग है।
2-किसान लोग देश के लिए धुरी के समान हैं, क्योंकि जोतने खोदने की शक्ति न होने के कारण जो लोग दूसरे काम करने लगते हैं उनको रोजी देने वाले वे ही लोग हैं।
3-जो लोग हल के सहारे जीते हैं वास्तव में वे ही जीते हैं और सब लोग तो दूसरे की कमाई हुई रोटी खाते हैं।
4-जहाँ के खेत लहलहाती हुई शस्य की श्यामल छाया के नीचे सोया करते हैं वहाँ के राजा के छत्र के सामने अन्य राजाओं के छत्र झुक जाते हैं।
5-जो लोग खेती करके जीविका चलाते हैं, वे केवल यही नहीं, कि स्वयं कभी भीख न माँगेंगे. बल्कि दूसरे भीख माँगने वालो को कभी नाहीं किये बिना दान भी दे सकेंगे।
6-किसान यदि खेती से अपने हाथ को रवींच लेवें तो उन लोगों को भी कष्ट हुए बिना ना रहेगा कि जिन्होंने समस्त वासनाओं का परित्याग कर दिया है।
7-यदि तुम अपने खेत की धरती को इतना सुखाओं कि एक सेर मिट्टी सूखकर चौथाई अंश रह जाय तो मुट्ठी भर खाद की भी आवश्यकता न होगी और फसल की पैदावार भरपूर होगी।
-जोतने की अपेक्षा खाद डालने से अधिक लाभ होता है और जब निदाई हो जाती है तो सिचाई की अपेक्षा रखवाली अधिक महत्व रखती है।
-यदि कोई आदमी खेत देखने नहीं जाता है और अपने घरपर ही दैत- रहता है तो पतिव्रता परनी की तरह उसकी कृषि भी रुष्ट हो जायेगी।
10-ग्रह सुन्दरी जिसे लोग धरिणी कहते हैं, अपने मन ही मन में हैंसा करती है जबकि वह किसी काहिल को ग्रह कह रोते हुए देखती है कि "हाय मेरे पास खो को कुछ भी नहीं है।"
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