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कुरल काव्य
परिच्छेदः १०
बड़ों के प्रति दुर्व्यवहार न करना
सन्तों के अपमान से, निज रक्षा का कार्य । करलो यदि हो कामना, क्षेम - कुशल की आर्य 11911
सत्पुरुषों की अज्ञ यदि, करे अवज्ञा हास । टूटे उनकी शक्ति से, शिर पर विपदाकाश ||२||
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हितजनों को लाँघकर जाओ करलो नाश । करो बली से वैर जो, करदे सत्तानाश ||३||
शक्ति सहित बलवान का, करता जो अपमान । वह क्रोधी निजनाश को, करता यम आह्वान ||४||
बलशाली या भूप का, करके क्रोध उभार । पृथ्वी पर नर को नहीं, सुख का कुछ आधार ॥५॥
पूर्ण भयंकर आग से बच सकते नर- प्राण | पर मान्यों से द्वेष रख कैसे उनका त्राण || ६ ||
आत्मबली योगीष जो, करें कोप की वृद्धि । जीवन में फिर हर्ष क्या, क्या हो वैभव- सिद्धि ||७||
गिरिसमान ऋषि उच्च हैं, उनकी शक्ति असीम | उखड़े उनके कोप से सुदृढ़ राज्य निस्सीम ||८||
व्रत से जिन का शुद्ध मन, वे ऋषि यदि हो रुष्ट । स्वर्गाधिप तब इन्द्र भी, होता पद से भ्रष्ट ॥६॥
आत्मशक्ति के देवता, ऋषि का कोप महान । बचे नहीं बलवान का, नर ले आश्रयदान ||१०||
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