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छुअल काव्य परपरिच्छेदः ८१
घनिष्ट मित्रता - 1-वही मैत्री घनिष्ट है जिसमें अपने प्रीतिपात्र की मर्जी के अनुकूल व्यक्ति अपने को समर्पित कर दे।
2-सच्ची मित्रता वही है जिसमें मित्र आपस में स्वतत्र रहें और एक दूसरे पर दबाव न डालें । विज्ञजन ऐसी मित्रता का कभी मी विरोध नहीं करते।
3-वह मित्रता किस काम की. जिसमें मित्रता के नाम पर ली गई किसी काम की स्वतंत्रता में सहमति न हो।
4-जब कि दो व्यक्तियों में प्रमाद मैत्री है उनमें से एक दूसरे की अनुमति के बिना ही कोई काम कर लेता है तो दूसरा मित्र आपस के प्रेम का ध्यान करके उससे प्रसन्न ही होगा।
5-जब कोई मित्र ऐसा काम करता है जिसमें तुम्हें कष्ट होता है तो समझ लो कि वह मित्र तुम्हारे साथ या तो परिपूर्ण मैत्री का अनुभव करता है या फिर अज्ञानी है। .....6-सच्चा मित्र अपने अभिन्न मित्र को नहीं छोड़ सकता, भले ही वह उसके विनाश का कारण क्यों न हो।
___7-जो व्यक्ति किसी को हृदय से और दीर्घकाल से प्रेम करता है वह अपने मित्र को घृणा नहीं कर सकता. भले ही वह उसे बार-बार हानि क्यों न पहुँचाता हो।
-उन व्यक्तियों के लिए जो अपने अभिन्नमित्र के विरुद्ध किसी प्रकार का आरोप सुनने से इनकार कर देते हैं, वह दिवस बड़ा आनन्द प्रद होता है, जबकि उसका मित्र आरोपकों को हानि पहुंचाता है।
-जो व्यक्ति दूसरे को अटूट प्रेम करता है उसे सारा संसार प्रेम करता है।
___ 10-जो व्यक्ति पुराने मित्रों के प्रति भी अपने प्रेम में अन्तर नहीं आने देते उन्हें शत्रु भी स्नेह की दृष्टि से देखते हैं।
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