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कुबल काव्य
परिचयः 52 श्रोताओं का निर्णय
1 जिसने वक्तृता का उत्तम अभ्यास किया है और सुरुचि प्राप्तकर ली है उसे प्रथम श्रोताओ की पूरी परख करनी चाहिए पीछे उनके अनुरूप भाषण देना चाहिए।
2- ए ! शब्दों का मूल जानने वाले पवित्र पुरुषो । पहिले अपने श्रोताओं की मानसिक स्थिति को समझ लो और फिर उपस्थित जनसमूह की अवस्था के अनुसार अपनी वक्तृता देना आरम्भ करो। 3- जो व्यक्ति श्रोतृवर्ग के स्वभाव का अध्ययन किये बिना भाषण देते हैं वे भाषणकला जानते ही नहीं और न वे किसी अन्य कार्य के लिए उपयोगी हैं।
4- बुद्धिमान् और विद्वान् लोगों की सभा में ही ज्ञान और विद्वत्ता की चर्चा करो, किन्तु मूर्खों को उनकी मूर्खता का ध्यान रखकर ही उतर दो।
5-धन्य है वह आत्म-सयम जो मनुष्य को वृद्ध जनों की सभा में आगे बढ़कर नेतृत्व ग्रहण करने से मना करता है ! यह एक ऐसा गुण है जो अन्य गुणों से भी अधिक समुज्ज्वल है
6- बुद्धिमान् लोगों के सामने असमर्थ और असफल सिद्ध होना धर्ममार्ग से पतित हो जाने के समान है।
7- विद्वानों की विद्वत्ता अपने पूर्ण तेज के साथ सुसम्पन्न गुणियों की सभा में ही चमकती है।
8- बुद्धिमान लोगों के सामने उपदेशपूर्ण व्याख्यान देना जीवित पौधों को पानी देने के समान है ।
9- ए ! वक्तृता से विद्वानों को प्रसन्न करने की इच्छा रखने वाले लोगो ! देखो कभी भूलकर भी मूर्खों के सामने व्याख्यान न देना । 10 अपने से मतभेद रखने वाले व्यक्तियों के समक्ष भाषण करना ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार अमृत को मलिन स्थान पर डाल देना ।
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