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ज, खुमन काव्य
परिच्छेदः ७२
श्रोताओं का निर्णय बचनकला सीखी प्रथम, रखो सुरुचि का ध्यान । श्रोताओं का भाव लख, दो वैसा व्याख्यान ।।१।।
हे शब्दों के पारखी, सद्वक्ता आचार्य ।
पहिले देखो श्रोतृमन, फिर दो भाषण आर्य ।।२।। श्रोताओं के चित्त जो, नहीं परखता योग्य । वचनकला-अनभिज्ञ वह, नहीं किसी के योग्य ।।३।।
प्राज्ञों में ही ज्ञान की, चर्चा उत्तम तात ।
मूों में पर मूर्खता,समझ करो तुम बात।।४।। मान्यजनों के सामने, करो न बढ़कर बात । वाणी-संयम धन्य है, उज्ज्वल गुण विख्यात ।।५।।
जो मनुष्य यदि हो नहीं, वक्ता सफल समर्थ ।
तो सभ्यों में भ्रष्टसम, रखे नहीं कुछ अर्थ ।।६।। गुणियों के दरबार में, गुणमणि का भण्डार । विद्वज्जन हैं खोलते, रुचि रुचि के अनुसार ।।७।।
प्राज्ञों को निजज्ञान का, देना मानो दान ।
जीवित-तरु को सींचकर, करना और महान ।।८।। भाषण से निजकीर्ति के, इच्छुक हे गुणवान । कभी न दो तुम भूलकर, अज्ञों में व्याख्यान ॥६॥
भिन्नपक्ष के सामने, भाषण का है अर्थ । मानों मलिन प्रदेश में, सुधा-वृष्टि सा व्यर्थ ।। १०।।