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जा कुबत्य काव्य परत परिच्छेदः ६५
राज-दूत जन्मा हो वर-वंश में, मन से दयानिधान । नृपमण्डल को मोद दे दूत वही गुणवान 1111
स्वामि-भक्ति, प्रज्ञाप्रखर, भाषण कलाअधान ।
दूतों में ये तीन गुण, होते बहुत महान ।।२।। प्रभुहित का जिसने लिया, नृपमण्डल में भार । प्राज्ञों में वह प्राज्ञ हो, वचन सुधामय सार ।।३।।
मुखमुद्रा जिसकी करे, नर पर अधिक प्रभाव ।
उस बुध का दूतत्व पर, दिखता योग्य चुनाव ।।४।। दूत सदा संक्षेप में, कहकर साधे काम ।। अप्रिय-वाणी त्याग कर, बोले वचन ललाम ।।५।।
विद्वत्ता समयज्ञता, वाणी भरी-प्रभाव ।
आशुबुद्धि ये दूतमें, गुण रखते सद्भाव ।।६।। स्थान समय कर्तव्य की, जिसकी है पहिचान । बोले पहिले सोचकर, वह ही दूत महान ।।७।।
जो स्वभाव से लोक में, हृदयाकर्षक आर्य ।
दृढ़प्रतिज्ञ वह विज्ञ ही, करे दूत के कार्य ।।८।। कहे न अनुचित बात जो, पाकर भी आवेश । ले जावे परराष्ट्र में, वह ही नृपसन्देश ।।६।।
नहीं हटे कर्तव्य से रख संकट में प्राण । लाख यत्न से दूतवर; करता प्रभुहित त्राण ।।१०।।
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