________________
न कुबत्य काव्य र
परिच्छेदः ६
राज-दूत 1. दयालु हृदय, उच्च कुल और राजओं को प्रसन्न करने की रीतियों ये सब राजदूतों की विशेषताएं हैं।
2-स्वामिभक्ति सुतीक्ष्णबुद्धि और वाक-पटुता ये तीनों बातें । राज-दूत के लिए अनिवार्य हैं।
3-जो मनुष्य राजाओं के समक्ष अपने स्वामी को लाभ पहुंचाने वाले शब्दों को बोलने का भार अपने शिर लेता है उसे विद्वानों में परमविद्वान होना चाहिए। ___4-व्यावहारिक ज्ञान, विद्वत्ता और प्रभावोत्पादक मुखमुद्रा ये बातें जिसमें हों उसी को राज-दूत के नाम पर बाहिर जाना चाहिए।
5-संक्षिप्त वत्कृता, वाणी की मधुरता और सावधानी के साथ अप्रिय भाषा का त्याग, ये ही साधन हैं जिनके द्वारा राजदूत अपने स्वामी को लाभ पहुंचाता है !
6-विद्वत्ता, प्रभावोत्पादक वक्तृता शान्तवृत्ति और समय सूचकता प्रगट करने वाली सुसंयत प्रत्युत्पन्नमति, ये सब राजदूत के आवश्यक गुण हैं।
7. वही सबसे योग्य राजदूत है जिसको समुचित क्षेत्र और समुचित समय की परख है, जो अपने कर्तव्य को जानता है तथा जो बोलने से पहिले अपने शब्दों को जांच लेता है।
8-जो मनुष्य दूत कर्म के लिए भेजा जाय वह दृक-प्रतिज्ञ. पवित्र- हृदय और चित्ताकर्षक स्वभाव वाला होना चाहिए।
-जो दृढ़प्रतिज्ञ पुरुष अपने मुख से हीन और अयोग्य वचन कभी नहीं निकलने देता विदेशी दरवारों में राजाओं के सन्देश सुनाने के लिए वहीं योग्य पुरुष है।
10-मृत्यु का सामना होने पर भी सच्चा राजदूत अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होता बल्कि अपने स्वामी के कार्य की सिद्धि के लिए पूरा यत्न करता है।
247
..........
.