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न कुल काव्य र परिच्छेदः १०
मधुर-भाषण 1-सत्पुरुषों की वाणी ही वास्तव में सुस्निग्ध होती है, क्योंकि वह दया, कोमल और बनावट से खाली होती है।
2-औदार्यमय दान से भी बढ़कर सुन्दर गुण, वाणी की मधुरता, दृष्टि की स्निग्धता और स्नेहार्द्रता में है।
3-हृदय से निकली हुई वाणी और ममतामयी स्निग्ध-दृष्टि में ही धर्म का निवास स्थान है।
4-जो मनुष्य सदा ऐसी वाणी बोलता है कि सबके हृदय को आल्हादित कर दे, उसके पास दुःखों की अभिवृद्धि करने वाली दरिद्रता कभी न आयेगी। . 5-नम्रता और प्रिय सम्भाषण, बस ये ही मनुष्य के आभूषण हैं. अन्य नहीं।
6--यदि तुम्हारे विचार शुद्ध तथा पवित्र हैं और तुम्हारी वाणी में सहृदयता है तो तुम्हारी पाप-वृत्ति का क्षय हो जायेगा और धर्मशीलता की अभिवृद्धि होगी ।
7- सेवाभाव को प्रदर्शित करने वाला और विनम्र वचन मित्र बनाता है तथा बहुत से लाभ पहुंचाता है।
8-वे शब्द जो कि सहृदयता से पूर्ण और क्षुद्रता से रहित हैं इस लोक तथा परलोक दोनों में सुख पहुँचाते हैं।
9- श्रुति-प्रिय शब्दों का माधुर्य चखकर भी मनुष्य क्रूर शब्दों का ।। व्यवहार करना क्यों नहीं छोडता?
10-मीठे शब्दों के रहते हुए भी जो मनुष्य कड़वे शब्दों का प्रयोग करता है वह मानों पके फलो को छोड़कर कच्चे फल खाता
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