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न कुमार काव्य परिच्छेद: 39
क्रोध-त्याग 1-जिसमें चोट पहुंचाने की शक्ति है उसी में सहनशीलता क. होना समझा जा सकता है । जिसमें शक्ति ही नहीं है वह क्षमा करे य न करे. उससे किसी का क्या बनता बिगड़ता है ?
2-यदि तुम में प्रहार करने की शक्ति न भी हो तब भी क्रोध करना बुरा है और यदि तुम में शक्ति हो तब क्रोध से बढ़कर बुरा काम और कोई नहीं है ।
-तुम्हारा अपराधी कोई भी हो, पर उसके ऊपर कोप न करो, . क्योंकि क्रोध से सैकड़ों अनर्थ पैदा होते हैं ।
4-क्रोध हर्ष को जला देता है और उल्लास को नष्ट कर देता है । क्या क्रोध से बढ़कर मनुष्य का और भी कोई भयानक शत्रु है ?
5–यदि तुम अपना भला चाहते हो तो रोष से दूर रहो, क्योंकि दूर न रहोगे तो वह तुम्हें आ दबोचेगा और तुम्हारा सर्वनाश कर डालेगा ।
6-अग्नि उसी को जलाती है जो उसके पास जाता है, परन्तु क्रोधाग्नि सारे कुटुम्ब को जला डालती है ।
7-जो क्रोध को इस प्रकार हृदय में रखता है मानो वह बहुमूल्य पदार्थ हो । वह उस मनुष्य के समान है जो जोर से पृथ्वी पर हाथ दे मारता है उस आदमी के हाथों में चोट लगे बिना नहीं रह सकती. ऐसे क्रोधी पुरुष का सर्वनाश अवश्यम्भावी है ।
8-जो तुम्हें हानि पहुँची है वह भले ही तुम्हें प्रचण्ड अग्नि के समान जला रही हो तब भी यही अच्छा है कि तुम क्रोध से दूर रहो।
_g-मनुष्य की समस्त कामनाएं तुरन्त ही पूर्ण हो जाया करें यदि अपने मन से क्रोध को दूर कर दें ।
10-जो क्रोध के मारे आपे से बाहर है वह मृतक के समान है. पर जिसने कोप करना त्याग दिया है वह सन्तो के समान है ।