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जा कुबल काव्य पर
परिच्छेदः 38
सत्य का अनुभव क्षण भंगुर संसार में, कोई वस्तु न सत्य । दुःखित जीवन भोगते, वे जो समझें सत्य ॥१।।
भ्रान्ति-भाव से मुक्ति हो, जो नर निर्मल दृष्टि । ||
दुःखतिमिर उसका हटे, और मिले सुख-सृष्टि ।।२।। जिसने छोड़ असत्य को, पाया सत्य प्रदीप । पृथ्वी से भी स्वर्ग है, उसको अधिक समीप ।।३।।
कभी न चाखा सत्य यदि, जो है शाश्वत अर्थ ।
मनुजयोनि में जन्म भी, लेना तब है व्यर्थ ।।४।। इसमें इतना सत्य है, शेष मृषा व्यवहार । ऐसा निर्णय वस्तु का, करती मेधासार ।।५।।
धन्य पुरुष, स्वाध्याय से, जिसके सत्य विचार ।
शिवपथ के उस पान्य को, मेले न फिर संसारा।६।। ध्यानाथिक से प्राप्त हो, जिसको सत्य अपार । भावी जन्मों के लिए, उसे न सोच विचार ।।७।।
शुद्ध ब्रह्ममय आप हो, करे अविद्या दूर ।
जो जननी भवरोग की, वही बुद्धि गुणपूर ।।८।। शिव साधन का विज्ञ जो, मोह विजय संलग्न । उसके भावी दुःख सब, बिना यत्न ही भग्न ।।६।।
काम क्रोधयुत मोह भी, ज्यों ज्यों होगा क्षीण । त्यो अनुगामी दुःख भी, होते अधिक विलीन ||१०||
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