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–कुवल काव्य परिच्छेदः ५ न्याय-शासन
1-पूर्ण विचार करो और किसी की ओर मत झुको, निष्पक्ष होकर नीतिज्ञ जनों की सम्मति लो, न्याय करने की यही रीति है।
2-संसार जीवनदान के लिए बादलों की ओर देखता है. ठीक इसी प्रकार न्याय के लिए लोग राजदण्ड की ओर निहारते हैं।
3-राजदण्ड ही ब्रह्म विद्या और धर्म का मुख्य संरक्षक है।
4-जो राजा अपने राज्य की प्रजा पर प्रेम पूर्वक शासन करता है उससे राज्यलक्ष्मी कभी पृथक् न होगी।
5- जो नरेश नियमानुसार राजदण्ड धारण करता है उसका देश समयानुकूल वर्षा और शस्य श्री का घर बन जाता है।
6-राजा की विजय का कारण उसका भाला नहीं होता है बल्कि यों कहिये कि वह राज-दण्ड है जो निरन्तर सीधा रहता है और कभी किसी की ओर को नहीं झुकता।
7-राजा अपनी समस्त प्रजा का रक्षक है और उसकी रक्षा करेगा उसका राज-दण्ड, परन्तु वह उसे कभी किसी की ओर न || झुकने दे।
____8--जिस राजा की प्रजा सरलता से उसके पास तक नहीं पहुँच सकती और जो ध्यानपूर्वक न्याय--विचार नहीं करता, वह राजा अपने पद से भ्रष्ट हो जायेगा और वैरियों के न होने पर भी नष्ट हो जायेगा।
9-जो राजा आन्तरिक और बाह्य शत्रुओं से अपनी प्रजा की रक्षा करता है, वह यदि अपराध करने पर उन्हें दण्ड दे तो यह उसका दोष नहीं है, किन्तु कर्तव्य है।
10-दुष्टों को मृत्युदण्ड देना अनाज के खेत से घास को बाहिर । निकालने के समान है।
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