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-जा कुबल काव्य और
परिच्छेदः 36
भवितव्यता दृढ़प्रतिज्ञ होता मनुज, पाकर उत्तम भाग्य । वही पुरुष होता शिथिल, जब आवे दुर्भाग्य ।।१।।
घटे मनुज की शक्ति भी, जब आवे दुर्भाग्य ।
प्रतिभा जागृत हो उठे, जब जागे सद्भाव ।।२।। ज्ञान तथा चातुर्य से, क्या हो लाम महान । कारण अन्तरब्रह्म ही, सर्वोपरि बलवान ।। ३।१ .
भिन्न सर्वथा एक से, दो ही जग में वस्तु ।
एक वस्तु ऐश्वर्य है, साधुशील परवस्तु ।।४।। शुभ भी बनता अशुभ है, जब हो उलटा भाग्य । और अशुम भी शुभ बने, जब हो सीधा भाग्य ।।५।।
___ बचे नहीं वह यल से, जिसे न चाहे दैव ।
फेंकी वस्तु न नष्ट हो, जब हो रक्षक दैव ॥६॥ ऊँचे शासक दैव का, जो न मिले कुछ योग । तो कौड़ी भी कोटिपति, कर न सके उपभोग ।।७।।
निर्थन भी करते कभी, त्यागी जैसे भाव ।
दैव दुःख भोगार्थ पर, देता उन्हें दबाव ।।८।। सुख में जो है फूलता, होकर हर्षित चित्त । दुःख समय वह शोक में, क्यों हो दुःखित्तचित्त ।।६।।
दैव बड़ा बलवान है, कारण उससे ग्रस्त । करता जय का यत्न जब, तब ही होता पस्त ।।१०।।
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