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कुरल काव्य
परिच्छेदः ४७ विचार पूर्वक काम करना
1. - पहिले यह देखलो कि इस काम में लागत कितनी लगेगी. कितना माल खराब जायेगा और लाभ इसमें कितना होगा, पीछे उस काम को हाथ में लो ।
2- देखो, जो राजा सुयोग्य पुरुषों से सलाह करने के पश्चात् ही किसी काम को करने का निर्णय करता है उसके लिए ऐसी कोई बात नहीं है जो असम्भव हो ।
3 - ऐसे भी उद्योग हैं जो नफे का हरा भरा बाग दिखाकर अंतमें मूलधन को नष्ट कर देते हैं. बुद्धिमान लोग उनमें हाथ नहीं लगाते। 4- जो लोग यह नहीं चाहत कि दूसरे आदमी उन पर हँसे वे पहिले अच्छी तरह से विचार किये बिना कोई काम प्रारम्भ नहीं करते। 5 ... सब बातों की अच्छी प्रकार मोर्चाबन्दी किये बिना ही लड़ाई छेड़ देने का अर्थ यह है कि तुम शत्रु को पूरी सावधानी के साथ तैयार की हुई भूमि पर लाकर खड़ा कर देते हो ।
6- कुछ काम ऐसे हैं कि जिन्हें नहीं करना चाहिए और यदि तुम करोगे तो नष्ट हो जाओगे तथा कुछ काम ऐसे हैं कि जिन्हें करना ही चाहिए, यदि तुम उन्हें न करोगे तो भी मिट जाओगे ।
7 भली रीति से पूर्ण विचार किये बिना किसी काम को करने का निश्चय मत करो । वह मूर्ख है जो काम प्रारम्भ कर देता है और मन में कहता है कि पीछे सोच लेंगे I
6- जो योग्यमार्ग से काम नहीं करता उसका सारा परिश्रम व्यर्थ जावेगा, चाहे उसकी सहायता के लिए कितने ही आदमी क्यों न आ जाये। 9- जिसका तुम उपकार करना चाहते हो उसके स्वभाव का यदि तुम ध्यान न रक्खोगे तो तुम मलाई करने में भी भूल कर सकते हो ।
10- तुम जो काम करना चाहते हो वह सर्वथा अपवाद रहित होना चाहिए, क्योंकि जगत में उसका अपमान होता है जो अपने पद के अयोग्य काम करने पर उतारू हो जाता है।
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