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ज, शुक्ल काव्य र परिच्छेदाः 3
बत्ता 1-केवल बन्धुता में ही विपत्ति के दिनों में भी स्पेह में स्थिरता रहती है।
2-यदि मनुष्य बन्धुगणों से सौभाग्यशाली है और बन्धुगणों का प्रेम उसके लिए घटता नहीं है तो उसका ऐश्वर्य कभी बढ़ने से नहीं रुक सकता।
3-जो मनुष्य अपने सम्बन्धियों के साथ सहृदयतापूर्वक नहीं मिलता है और उनका स्नेह नहीं पाता है वह उस सरोवर के समान है जिसमें उँटा न हो और बढ़ती रूपी पानी उससे दूर बह जाता है।
4-अपने नातेदारों को एकत्रित कर उन्हें अपने स्नेह बन्धन में बाधना ही ऐश्वर्य का लाभ और उददेश्य है।
5-यदि एक आदमी की वाणी मधुर है और उदारहस्त है तो उस के संबंधी उसके पास पंक्ति बांधकर एकत्रित हो जायेंगे।
6-जो मनुष्य बिना रोक के खूब दान करता है और कभी क्रोध नहीं करता. उससे बढ़कर जगत बन्धु कौन है ?
7-कौआ अपने भाइयों से अपने भोजन को स्वार्थ से छिपाता नहीं है, बल्कि प्यार से उसको बाँटकर खाता है । ऐश्वर्य ऐसे ही प्रकृति के लोगों के साथ रहेगा।
8-यह अच्छा है यदि राजा अपने सभी संबंधियों के साथ एक सा व्यवहार नहीं करता परन्तु प्रत्येक के साथ उसकी योग्यतानुसार भिन्न भिन्न व्यवहार करता है, क्योंकि ऐसे भी बहुत से हैं जो विशेषाधिकार को एकाकी रूप से भोगना पसन्द करते हैं।
-एक संबंधी का मनमुटाव सरलता से दूर हो जाता है। यदि उदासीनता का कारण हटा दिया जाय लो वह तुम्हारे पास वापिस आ जायेगा।
___10--जब एक संबंधी जिसका संबंध तुम से टूट गया हो और तुम्हारे पास किसी प्रयोजन के कारण वापिस आता है तो तुम उसे स्वीकार करो, परन्तु सतर्कता के साथ।
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