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- छुतर काव्य -
परिच्छेद: ५५ विश्वस्त पुरुषों की परीक्षा धन से, भय से, काम से, और धर्म से भूप । जाँचों नर के सत्य को, मान कसौटी रूप ।। 911
जिसे प्रतिष्ठा भंग का, भय रहता स्वयमेव ।।
उस कुलीन निर्दोष को, रखो सदा नरदेव ।।स, ज्ञानविभूषित प्राज्ञ नर, ऋषिसम शीलाधार । दोषशन्य वे भी नहीं, जो देखो सुविचार ।।३।।
सद्गुण देखो पूर्व में, फिर देखो सब दोष ।
उनमें जो भी हो अधिक, प्रकृति उसीसम घोष ।।४।। इसका मन क्या क्षुद्र है, अथवा उच्च उदार । . एक कसौटी है इसे, देखो नर-आचार ।।५।। .
आशु-प्रतीति न योग्य वे, जो नर हैं गृहहीन ।
कारण एकाकी मनुज, लज्जा-ममताहीन ।।६।। मूर्ख मनुज से प्रेमवश, करके यदि विश्वस । करे मंत्रणा भूप तो, विपदायें शिर-पास ।।७।।
अपरीक्षित नर का अहो, जो करता विश्वास ।
दुःखबीज बोकर कुधी, देता संतति त्रास ||८|| करो परीक्षित पुरुष का, मन में नृप विश्वास । जाँच अनन्तर योग्यपद, दो उसको सोल्लास ।।६।।
बिना ज्ञान कुल शील के, करना परविश्वास । अप्रतीति फिर ज्ञात की, दोनों देते बास ।।१०।।
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