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काव्य
कुरल काव्य
परिच्छेद: १२ पुरूष परीक्षा और नियुक्ति गुण दुर्गुण जाने उभय, चलता पर, शुभचाल । ऐसे को ही कार्य में, कर नियुक्त नरपाल ।। १५१
जिसकी प्रतिभा से रहे, शासन में विस्फूर्ति ।
और हटे विपदा वही, करे सचिवपद-पूर्ति ।।२।। । निर्लोभी, करुणाभरा, कर्मठ, बुद्धिविशाल । राज्यकार्य को राखिए, ऐसा नर भूपाल ।।३।।
ऐसे भी नर हैं बहुत, जिनका पौरुष ख्याल ।
वे भी नर कर्तव्य से, अवसर पर हटजात ।।४।। प्रीतिमात्र से कार्य का, भार न दो नरनाथ । कार्यकुशल हो शान्तिमय, यह भी देखो साथ ।।५।।
जिसकी जैसी योग्यता, वैसा दो अनुरूप। .
कार्य उसे फिर काम को, करवाओ मनरूप ।।६।। पहिले देखो शक्ति को, फिर उसके सब कार्य । तब दो सेवक हाथ में, गतसंशय हो, कार्य ।।७।।
उस पद को उपयुक्त यह, हो यदि यह ही भाव ।
तब उसके अनुरूप ही, करो व्यवस्था राव (१८|| भक्त कुशल भी मृत्यपर, रुष्ट रहे जो देव । भाग्यश्री उस भूप की, फिरजाती स्वयमेव ।।६।।
भृत्यवर्ग के कार्य को, प्रतिदिन देखो भूप । शुद्ध भृत्य हो राज्य में, फिर विपदा किसरूप ।।१०।।
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