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कुरल काव्य
परिच्छेदः ४८ शक्ति का विचार
विधनों को सोचे प्रथम, निज पर की फिर शक्ति 1 देखे पक्ष विपक्ष बल, कार्य करे फिर व्यक्ति ||१||
बना सुशिक्षित और जो रखता निजबल - ज्ञान । अनुगामी हो बुद्धि का, सफल उसी का यान || २ ||
मानी निजबल के बहुत, हुए नरेश अनेक । शक्ति अधिक जो कार्य कर, मिटे वृथा रख टेक || ३ ||
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बहुमानी अथवा जिसे नहीं बलाबलज्ञान । या अशान्त जीवन अधिक तो समझो अवशान ।।४।।
दुर्बल भी दुर्जय बने, पाकर सब का संग । मोरपंख के भार से, होता रथ भी भंग ||५||
क्रिया, शक्ति को देखकर करते बुद्धिविशाल । तरु की चोटी अज्ञ चढ़, शिरपर लेता काल ॥६॥
वैभव के अनुरूप ही, करो सदा बुध दान । यह ही योगक्षेम का, कारण श्रेष्ठ विधान ||७|
क्या चिन्ता यदि आय की नाली है संकीर्ण । व्यय की यदि नाली नहीं, गृह में अति विस्तीर्ण ॥ ८ ॥
द्रव्य तथा निजशक्ति के, लेखे का जो काम । रखे नहीं जो पूर्व से, रहे न उसका नाम || खुले हाथ जो द्रव्य को, लुटवाता क्षय में मिलता शीघ्र ही, उसका कोष महान ||१०||
अंज्ञान ।
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