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कुरल काव्य
परिच्छेदः 29 शिक्षा की उपेक्षा
जो पूरी शिक्षा बिना, भाषण दे चढ़ मंच | पट बिन चौपड़ खेल का, मानो रचे प्रपंच || १ ||
वक्ता की त्यों कीर्ति को, चाहे विद्याक्षीण । युवकाकर्षणरागिणी, ज्यों नारी कुचहीन || २ ||
सब कार्य 1
बिबुधों में यदि धैर्य धर रहे मूर्ख चुपचाप । तो उसको भी यह जगत, गिनता बुध ही आप ।।३।। भले अशिक्षित दक्ष हो, करने में फिर की उसकी राय का, भूख न जो समझे बुध आप को, विद्या से मन खींच । खुलकर लज्जित हो वही बोल सभा के बीच ।।५।।
एक अशिक्षित की दशा, ऊषर भूमि समान । जीवित वह इसके सिवा कह न सकें जन आन । । ६ । । प्राज्ञों की धनहीनता, मन को नहीं सुहात । मूर्खविभव उससे अधिक, अप्रिय लगता भ्रात ।।७।।
सूक्ष्म तत्त्व जिसके नहीं, बनते प्रतिभागेह । सजी धजी भृण्मूर्ति सम, उसकी सुन्दर देह ||८||
विद्या बिना कुलीन भी, लघु ही होता भान । और सुशिक्षित निम्न भी, लगता गौरववान ||६||
आर्य ॥8॥
पशुओं से जितना अधिक, उत्तम नर है ताल । बस उतना ही मूर्ख से, शिक्षित वर विख्यात ||१०||
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