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कुमक्ष अाच पर
परिच्छेदः 3
त्याग १ --मनुष्य ने जो वस्तु छोड़ दी है उससे पैदा होने वाले दुःख से उसने अपने को मुक्त कर लिया है ।
त्याग से अनेको प्रकार के सुख उत्पन्न होते हैं, इसलिए यदि तुम उन्हें अधिक समय तक भोगना चाहते हो तो शीध्र त्याग करो।
3-अपनी पाँचों इन्द्रियों का दमन करो और जिन पदार्थों से तुम्हें सुख मिलता है उन्हें बिल्कुल ही त्याग दो ।
4-अपने पास कुछ भी न रखना यही व्रतधारी का नियम है । एक वस्तु को भी अपने पास रखना मानों उन बन्धनों में फिर आ फँसना है जिन्हें मनुष्य एक बार छोड़ चुका है ।
जो लोग पुनर्जन्म के चक्र को बन्द करना चाहते हैं, उनके लिए यह शरीर भी अनावश्यक है । फिर भला अन्य बन्धन कितने अनावश्यक न होंगे ?
6-'मैं' और 'मेरे के जो भाव हैं, वे घमण्ड और स्वार्थ पूर्णता के अतिरिक्त और कुछ नहीं हैं । जो मनुष्य उनका दमन कर लेता है वह देवलोक से भी उच्च लोक को प्राप्त होता है ।
7-देखो, जो मनुष्य लालच में फंसा हुआ है और उससे निकलना नहीं चाहता, उसे दुःख आकर घेर लेगा और फिर मुक्त न होगा ।
8-जिन लोगों ने सब कुछ त्यागं दिया है, वे मुक्ति के मार्ग में हैं, परन्तु अन्य सब मोहजाल में फंसे हुए हैं ।।
-ज्यों ही लोभ-मोह दूर हो जाते हैं त्यों ही उसी क्षण पुनर्जन्म बन्द हो जाता है । जो मनुष्य इन बन्धनों को नहीं काटते वे भ्रमजाल में फंसे रहते हैं । .
10-उस ईश्वर की शरण में जाओ जिसने सब मोहों को छिन्न भिन्न कर दिया है और उसी का आश्रय लो जिससे सब बन्धन टूट जायें ।
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