________________
जो कुल काव्य पर
परिच्छेदः 38
संसार की अनित्यता 1-उस मोह से बढ़कर मूर्खता की बात और कोई नहीं है कि जिसके कारण अस्थायी पदार्थों को मनुष्य स्थिर और नित्य समझ बैठता है ।
2-धनोपार्जन करना खेल देखने के लिए आयी हुई भीड़ के सदृश है और धन का क्षय उस भीड़ के तितर-बितर हो जाने के समान है ।
3--समृद्धि क्षणस्थायी है । यदि तुम समृद्धिशाली हो गये हो तो ऐसे काम करने में देर न करो जिनसे स्थायी लाभ पहुँच सकता है ।
4-समय देखने में भोला भाला और निर्दोष मालूम होता है, परन्तु वास्तव में वह एक आरा है जो मनुष्य के जीवन को बराबर काट रहा है ।
5–पबित्र काम करने में शीघ्रता करो, ऐसा न हो बोली बन्द हो जाय और हिचकियाँ आने लगें ।
6-कल तो एक आदमी विद्यमान था और आज वह नहीं है, संसार में यही बड़े अचरज की बात है ।
7-मनुष्य को इस बात का तो पता नहीं कि पल भरे के पश्चात् यह जीवित रहेगा या नहीं, पर उसके विचारों को देखो तो वे करोड़ों की संख्या में चल रहे हैं ।
-पंख निकलते ही चिड़िया का बच्चा फूट हुए अण्डे को छोड़कर उड़ जाता है । शरीर और आत्मा की पारस्परिक मित्रता का यही दृष्टान्त है।
g-मृत्यु नींद के समान है और जीवन उस निद्रा से जागने के तुल्य है।
___ 10-क्या आत्मा का अपना कोई निज घर नहीं है, जो वह इस निकृष्ट शरीर में आश्रय लेता है ?