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कुरल काव्य
परिच्छेदः 32
उपद्रव त्याग
1- शुद्धांतःकरणाला मनुष्य की सम्पत्ति मिले तो भी किसी को त्रास देने वाला नहीं बनेगा |
2 - द्वेषबुद्धि से प्रेरित होकर यदि कोई दूसरा आदमी उसे कष्ट देवे तो भी पवित्र हृदय का व्यक्ति उसे उसका बदला नहीं देता ।
3- यदि बिना किसी छेड़खानी के तुम्हें किसी ने कोई कष्ट दिया है और बदले में तुम भी उसे वैसा ही कष्ट दोगे तो अपने ऊपर ऐसे घोर संकटों को खींच लोगे जिनका फिर कोई उपचार नहीं ।
4- दुख देने वाले व्यक्ति को शिक्षा अर्थात् दण्ड देने का यह ही एक उत्तम उपाय है कि तुम उसके बदले में मलाई करो जिससे वह मन ही मन लज्जा के मारे मर जावे, यह ही उससे बड़ी गहरी मार है।
5- दूसरे प्राणियों के दुःख को जो अपने दुःख समान ही नहीं समझता और इसीलिए वह दूसरों को कष्ट देने से विमुख नहीं होता, ऐसे मनुष्य की बुद्धिमत्ता का क्या उपयोग ?
5- स्वयं एक बार दुखों को भोग कर मनुष्य के फिर वैसे कष्ट दूसरों को न देने का ध्यान रखना चाहिये ।
7- यदि तुम जानबूझकर किसी प्राणी को थोड़ा सा भी दुःख नहीं देते हो, तो यह बड़ी श्लाघ की बात है ।
8- स्वयं कष्ट आ पड़ने पर कैसी वेदना होती है. ऐसा जिसको अनुभव है वह दूसरे को दुःख देने के लिए कैसे उतारू होगा ?
9- यदि कोई मनुष्य किसी पड़ोसी को दोपहर को दुःख देता है। तो उसी दिन तीसरे पहर ही उसके ऊपर विपत्तियाँ अपने आप आ टूटेंगी ।
10 - दुष्कर्म करने वालों के शिर के ऊपर विपत्तियाँ सदैव आया ही करती हैं, इसलिए जो मनुष्य दुःखदाई अनिष्टों से बचना चाहते है वे आप ही दुष्कृत्यों से सदैव अलग रहते हैं ।
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