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कुरल काव्य
परिच्छेद: 39 क्रोध-त्याग
क्रोध त्याग तब ही मला, जब हो निग्रह शक्ति । कारण क्षमता के बिना, निष्फल राग-विरक्ति ||१||
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यदि है निग्रहशक्ति तो, कोप, घृणामय व्यर्थ और नहीं वह शक्ति तो, कोप किये क्या अर्थ ॥२॥
हानिविधायक कोई हो, तो भी तजदो रोष । कारण करता सैकड़ों, अति अनर्थ यह दोष || ३ ||
क्रोध तुल्य रिपु कौन जो कर सर्व-विनाश हर्ष तथा आनन्द को, वह है यम का पाशा | ४॥
निज शुभ की यदि कामना, कोप करो तो दूर । टूटेगा वह अन्यथा, कर देगा सब धूर ||५||
जलता वह ही आग में, जो हो उसके पास । क्रोधी का पर वंश भी, जलता बिना प्रयास ।। ६ ।।
निधिसम मनमें कोप जो, रक्षित रखता आप । भू में कर वह मारकर पागल करे विलाप ||७||
बड़ी हानि को प्राप्त कर, बलता हो यदि कोप । तो भी उत्तम है यही, करो कोप का लोप ॥८॥
इच्छाऐं उसकी सभी, फलें सदा भरपूर
जिसने अपने चित्त से, कोप किया अति दूर ॥६॥
वह क्रोधी मुततुल्य है, जिसे न निज का भान । पर उसका होत सन्न समान |1901
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