________________
परिच्छेदः १९ चुगली से घृणा
1- जो मनुष्य सदा अन्याय करता है और न्याय का कभी नाम भी नहीं लेता, उसको भी प्रसन्नता होती है. जब कोई कहता है- देखो. यह आदमी किसी की चुगली नहीं खाता ।
2 - सत्कर्म से विमुख हो जाना और कुकर्म करना निस्संदेह बुरा है, पर मुख पर हँसकर बोलना और पीठ पीछे निन्दा करना उससे भी बुरा है। 3- झूठ और चुगली के द्वारा जीवन व्यतीत करने से तो तत्काल ही मर जाना अच्छा है, क्योंकि इस प्रकार मर जाने से शुभकर्म का फल मिलेगा ।
4- पीठ पीछे किसी की निन्दा न करो, चाहे उसने तुम्हारे मुख पर ही तुम्हें गाली दी हो ।
s - मुख से चाहे कोई कितनी ही धर्म कर्म की बातें करे पर चुगल खोर जिव्हा उसके हृदय की नीचता को प्रगट कर ही
उसकी
छुवल काव्य
देती है।
6- यदि तुम दूसरे की चुगली करोगे तो वह तुम्हारे दोषों को खोज कर उनमें से बुरे दोषों को प्रगट कर देगा
7- जो मधुर बचन बोलना और मित्रता करना नहीं जानते वे चुगली करके फूट का बीज बोते हैं और मित्रों को एक दूसरे से जुदा कर देते हैं ।
8- जो लोग अपने मित्रों के दोषों को स्पष्ट रूप से सबके सामने कहते हैं, वे अपने वैरियों के दोषों को भला कैसे छोड़ेंगे ? 9- पृथ्वी अपनी छाती पर निन्दा करने वाले के पदाघात को धैर्य के साथ किस प्रकार सहन करती है ! क्या चुगलखोर के भार से अपना पिण्ड छुड़ाने के लिए ही धर्म की ओर बार बार ताकती है ? 10- यदि मनुष्य अपने दोषों की विवेचना उसी प्रकार करे जिस प्रकार कि वह अपने वैरियों के दोषों की करता है, तो क्या उसे कभी कोई दोष स्पर्श कर सकेगा ?
147