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कुरल काव्य
परिच्छेदः ४ धर्म-महिमा
1- धर्म से मनुष्य को मोक्ष मिलता है और उससे स्वर्ग की प्राप्ति भी होती है, फिर भला धर्म से बढ़कर लाभदायक वस्तु और क्या है। 2 - धर्म से बढ़कर दूसरी और कोई नेकी नहीं, और उसे भुला देने से बढ़कर दूसरी कोई बुराई भी नहीं है।
3 -- सत्कर्म करने में तुम लगातार लगे रहो, अपनी पूरी शक्ति और पूर्ण उत्साह के साथ उन्हें करते रहो ।
4- अपना अन्तःकरण पवित्र रक्खो धर्म का समस्त सार बस एक इसी उपदेश में समाया हुआ है, अन्य सब बातें और कुछ नहीं. केवल शब्दाडम्बर मात्र हैं ।
5- ईर्ष्या, लालच, क्रोध और अप्रिय वचन इन सबसे दूर रहो. धर्म-प्राप्ति का यही मार्ग है ।
6 - यह मत सोचो कि मैं धीरे धीरे मार्ग का अवलम्बन करूगा, किन्तु अभी बिना बिलम्ब किये ही शुभ कर्म करना प्रारम्भ कर दो क्योंकि धर्म ही वह वस्तु है जो मृत्यु के समय तुम्हारा साथ देने वाला, अमर मित्र होगा ।
7- मुझसे यह मत पूछो कि धर्म करने से क्या लाभ है ? बस एक बार पालकी उठाने वाले कहारों की ओर देख लो और फिर उस आदमी को देखो, जो उसमें सवार है !
8- यदि तुम, एक भी दिन व्यर्थ नष्ट किये बिना, समस्त जीवन सत्कर्म करने में बिताले हो तो तुम आगामी जन्मों का मार्ग बन्द किये देते हो !
9- केवल धर्म -जनित सुख ही वास्तविक सुख है, शेष सब तो पीड़ा और लज्जा - मात्र हैं।
10- जो काम धर्मसंगत है, बस वही कार्यरूप में परिणत करने योग्य है। दूसरी जितनी बातें धर्मविरुद्ध हैं, उनसे दूर रहना चाहिए ।
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