Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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पृ. सं.
५४
३७
३८
( ३३ ) विषय
पृ. सं. विषय अनुभागकाण्डक उत्कीरणकाल और
उपदेशोंका निर्देश स्थितिबन्ध काल उसके साथ समाप्त जब सम्यग्मिथ्यात्वके अन्तिम स्थितिहोता है
काण्डकका पतन हो जाता है तब अपूर्वकरणके अन्तिम समयमें स्थितिसत्कर्म उसका जघन्य स्थितिसंक्रम और
आदिके अल्पबहुत्वका निर्देश ३८ उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है तथा अनिवृत्तिकरणके प्रथम समय में अपूर्व
सम्यक्त्वका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म स्थितिकाण्डक आदिका निर्देश
होता है इसका निर्देश
५५ गुणश्रेणि और गुणसंक्रमका निर्देश
36 पहले सम्यक्त्वकी स्थितिके विषयमें दो अनिवृत्तिकरणके प्रथम समय में दर्शनमोहनीय ।
उपदेशोंका निर्देश किया उनमेंसे सम्बन्धी अप्रशस्त उपशामना आदिकी
आठ वर्षप्रमाण स्थितिसत्कर्मको व्युच्छित्ति
४० अपेक्षा विचार करनेका निर्देश ५६ वहीं सब कर्मोंके स्थितिसत्कर्मका विचार ४१ | सम्यक्त्वकी उक्त स्थिति शेष रहनेपर जीवको अनिवृत्तिकरणका संख्यात बहुभाग जानेपर। दर्शनमोहक्षपक यह संज्ञा प्राप्त होती है
दर्शनमोहकास्थितिसत्कर्म क्रमसे कितना इसका निर्देश रहता है इसका खुलासा
४१ यहीं यह संज्ञा क्यों प्राप्त हुई इसका टीकामें। दर्शनमोहका पल्योपमप्रमाण या इससे कम विशेष स्पष्टीकरण
५८ स्थितिसत्कर्म रहने पर स्थितिकाण्डक . प्रकृतमें स्थितिकाण्डकके प्रमाणका निर्देश ५९
कितना होता है इसका निर्देश ४३- अपूर्वकरणके प्रथम समयसे लेकर यहाँ तक दूरापकृष्टिप्रमाण स्थिति रहने पर स्थिति- जो गुणश्रेणिनिक्षेप होता है उसमें काण्डक कितना होता है इसका विचार ४४ गुणकार परिवर्तन नहीं है इसका स्पष्टी सम्यक्त्वके असंख्यात समयप्रवद्धोंकी उदीरणा
करण कहाँ पर होती है इसका विचार ४८ सम्यक्त्वकी आठ वर्पप्रमाण स्थितिसत्कर्मके . जब मिथ्यात्वका आवलि बाह्य सब द्रव्य
रहने पर अनुभाग अपवर्तनसम्बन्धी क्षपणाके लिये ग्रहण किया तब सन्य
एक क्रियापरिवर्तन क्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति
अन्तिम स्थितिकाण्डकके कितनी रहती है इसका निर्देश ४९
_होनेरूप दूसरा क्रियापरिवर्तन ६३ मिथ्यात्वको जघन्य संक्रम तथा उतकृष्ट सम्यक्त्वको आठ वर्षप्रमाण स्थितिके ऊपर प्रदेशसंक्रम और सम्यग्मिथ्यात्वका
सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म कहाँ पर होता है
अन्तिम फालिके द्रव्यका निक्षेप करते इसका विचार
समय किस प्रकार गुणाकार परिवर्तन मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसत्कर्म कहाँ पर । होता है इसका निर्देश होता है इसका निर्देश
५२ | यह गुणाकारपरावर्तन द्विचरमस्थितिकाण्डके जब मिथ्यात्वका सर्वसंक्रम होता है तब अन्तिम समय तक होता है ७०
सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका स्थिति- प्रकृतमें उपयोगी अल्पबहुत्वका निर्देश ७१
काण्डक कितना होता है इसका निर्देश ५३ | सम्यक्त्व के अन्तिम स्थितिकाण्डकके घात सम्यग्मिथ्यात्वके आवलि बाह्य सर्व द्रव्यकी । के लिए प्रथम समयमें ग्रहण करने पर
क्षपणा कहाँ होती है इसका निर्देश ५३ | प्रदेशपुंजका निक्षेप किस प्रकार होता सम्यक्त्वके स्थितिसत्कर्मके विषयमें दो
है इसका निर्देश
७३