Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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शतक
व्युच्छिन्न हो जायेगा, उसे अनादि-सान्त कहते हैं। यह भव्य को होता
है।
(३) सादि-अनन्त- जो आदि सहित होकर अनंत हो। लेकिन यह भंग किसी भी बंध या उदय प्रकृति में घटित नहीं होता है । क्योंकि जो बंध या उदय आदि सहित होगा वह कभी भी अनन्त नहीं हो सकता है। इसीलिये इस विकल्प को ग्राह्य नहीं माना जाता है।
। (४) सादि-सान्त-जो बंध या उदय बीच में रुक कर पुनः प्रारम्भ होता है और कालान्तर में पुनः व्युच्छिन्न हो जाता है, उस बंध या उदय को सादि-सान्त कहते हैं। यह उपशांतमोह गुणस्थान से च्युत हुए जीवों में पाया जाता है।
इस प्रकार से चार भंगों का स्वरूप बतलाकर अब आगे की गाथा में बन्ध और उदय प्रकृतियों में उक्त भंगों को घटाते हैं। पढमविया धुवउदइसु धुवबंधिसु तहअवज्जभंगतिगं । मिच्छम्मि तिमि भंगा दुहावि अधुवा तुरिअभंगा ॥५॥
शब्दार्थ-पढमविया-पहला और दूसरा भंग, धुवउदइसुध्र वोदयी प्रकृतियों में, धुवबंधिसु-ध्र वबन्धिनो प्रकृतियों में, तइअवज्ज-तीसरे भंग के सिवाय, भंगतिगं-तीन भंग होते हैं, मिच्छम्मि- मिथ्यात्व में, तिन्नि-तीन, भंगा-मंग दुहावि-दोनों प्रकार की, अधुवा- अध्र वबंधिनी और अध्र वोदयी में, तुरिम. भंगा-चौथा भंग। ____ गाथार्थ-ध्रुवोदयी प्रकृतियों में पहला और दूसरा भंग होता है । ध्रुव-बन्धिनी प्रकृतियों में तीसरे भंग के अलावा
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